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ब्राह्मण और श्रमण परम्परा में भेद

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer ब्राह्मण और श्रमण परम्परा में भेद ब्राह्मण और श्रमण परम्परा में भेद        ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को ही मोक्ष का आधार मानता हो और वेद वाक्य को ही ब्रह्म वाक्य मानता हो। ब्राह्मणों के अनुसार ब्रह्म और ब्रह्माण्ड को जानना आवश्यक है , तभी ब्रह्मलीन होने का मार्ग खुलता है। श्रमण वह है जो श्रम द्वारा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को मानता हो और जिसके लिए व्यक्ति के जीवन में ईश्वर की नहीं , श्रम की आवश्यकता है। श्रमण परम्परा तथा श्रमण सम्प्रदायों का उल्लेख प्राचीन बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में मिलता है तथा ब्राह्मण परम्परा का उल्लेख वेद , उपनिषद् और स्मृतियों में मिलता है।        फिर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने दार्शनिकों की जाति को दो श्रेणियों में विभाजित किया है - ब्राह्मण और श्रमण। ब्राह्मण 37 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे। ब्राह्मण की वृत्ति के सम्बन्ध में मेगस्थनीज लिखता है यज्ञ , अन्त्य