मीमांसा दर्शन की प्रमाण मीमांसा
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन की प्रमाण मीमांसा मीमांसा दर्शन की प्रमाण मीमांसा मीमांसक , ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करने के कारण अनीश्वरवादी हैं , किन्तु नास्तिक नहीं हैं , क्योंकि ये वेदों को प्रामाणिक मानते हैं। मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य वेदों के प्रामाण्य को स्थापित करना था , फलत : इस लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रमाण मीमांसा के विभिन्न तत्त्वों की विस्तृत विवेचना की गई है। उल्लेखनीय है कि मीमांसकों की प्रमाण मीमांसा यथार्थवादी है। मीमांसकों के अनुसार ' प्रमा ' किसी वस्तु का यथार्थ ज्ञान है। महर्षि जैमिनी ने इस यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष , अनुमान एवं शब्द प्रमाणों का विवेचन किया था। जैमिनी के बाद बहुत - से टीकाकार एवं स्वतन्त्र ग्रन्थकार हुए , उनमें दो मुख्य हैं - कुमारिल भट्ट एवं प्रभाकर। इन दोनों के नाम पर मीमांसा में क्रमश : दो सम्प्रदाय चल पड़े - भट्टमीमांसा एवं प्रभाकर मीमांसा। प्रभाकर ने यथार्थ ज्ञान को प्र