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Thursday, May 19, 2022

डी डी उपाध्याय का पुरुषार्थ विचार

डी डी उपाध्याय का पुरुषार्थ विचार 

डी डी उपाध्याय का पुरुषार्थ विचार 

    उपाध्याय जी के अनुसार, प्राचीन भारतीय संस्कृति में रचित चतुर्थ पुरुषार्थ, पूँजीवाद और साम्यवाद की पश्चिमी विचारधारा की तरह एकीकृत एवं असन्तुष्ट व परस्पर विरोधी नहीं है । समग्र मानवतावाद के विषय में उपाध्याय जी का विचार ही समाज के समग्र एवं सतत् विकास को सुनिश्चित कर सकता है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सुख और शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। उपाध्याय जी का मानना है कि पूँजीवादी और समाजवादी दोनों विचारधारा केवल शरीर एवं मन की आवश्यकताओं पर विचार करती हैं और इसलिए इच्छा और धन के भौतिकवादी उद्देश्यों पर आधारित हैं। उपाध्याय जी के अनुसार, मानव के शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा चार पदानुक्रमिक संगठित गुण हैं, जो धर्म (नैतिक कर्त्तव्यों), अर्थ (धन), काम (इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति) के चार सार्वभौमिक उद्देश्यों के अनुरूप हैं। इनमें से किसी को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। इनमें धर्म मूल एवं मानव जाति का आधार है। धर्म वह धागा है, जो मानव जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य 'मोक्ष' के लिए काम एवं अर्थ का पालन करता है। धर्म आधारभूत पुरुषार्थ है, किन्तु तीन अन्य पुरुषार्थ एक-दूसरे के पूरक एवं पोषक हैं। राज्य का आधार भी धर्म को माना गया है। उपाध्याय जी के अनुसार, धर्म महत्त्वपूर्ण है, परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि अर्थ के अभाव में धर्म टिक नहीं पाता। उपाध्याय जी कहते हैं ‘अर्थ के अभाव के समान ही अर्थ का प्रभाव भी धर्म के लिए घातक होता है। जब समाज में अर्थ साधन न होकर साध्य बन जाए तथा जीवन की सभी विभूतियाँ अर्थ से ही प्राप्त हों तथा अर्थ का प्रभाव उत्पन्न हो, तो अर्थ संचय के लिए व्यक्ति अनुचित कार्य करता है। इसी प्रकार अधिक धन होने से व्यक्ति के विलासी बन जाने की सम्भावना अधिक होती है। उपाध्याय जी ने कहा है कि हमारे चिन्तन में व्यक्ति के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा सभी के विकास करने का उद्देश्य रखा गया है। अत: उपाध्याय जी ने पश्चिमी अवधारणा के विपरीत समग्र मानवतावाद की अवधारणा पर विशेष बल दिया है।

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डी डी उपाध्याय का अद्वैत वेदान्त विचार

डी डी उपाध्याय का अद्वैत वेदान्त विचार 

डी डी उपाध्याय का अद्वैत वेदान्त विचार 

    उपाध्याय जी का मत था कि समग्र मानवतावाद ने आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा विकसित अद्वैत परम्परा का पालन किया है । गैर-द्वैतवाद ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु एकीकृत के सिद्धान्त का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका एक मुख्य भाग मानव जाति भी है । समग्र मानवतावाद गाँधी के भावी भारत के दृष्टिकोण का स्पष्ट उदाहरण है । उपाध्याय एवं गाँधीजी दोनों समाजवाद और पूँजीवाद के भौतिकवाद को समान रूप से अस्वीकार करते हैं । दोनों एकांकी वर्ग-धर्म आधारित समुदाय के पक्ष में आधुनिक समाज के व्यक्तिवाद को अस्वीकार करते हैं तथा दोनों ही राजनीति में धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के उल्लंघन का विरोध करते हैं । दोनों ही हिन्दू मूल्यों को संरक्षित करने वाले सांस्कृतिक एवं आधुनिकीकरण की प्रमाणित विधि चाहते हैं । समग्र मानवतावाद में राजनीति और स्वदेशी, इन दो विषयों के आस-पास दर्शन आयोजित है ।

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डी डी उपाध्याय का समग्र मानववाद विचार

डी डी उपाध्याय का समग्र मानववाद विचार 

डी डी उपाध्याय का समग्र मानववाद विचार 

    उपाध्याय जी ने मानवता के समग्र विकास पर चिन्तन को 'अन्त्योदय' के नाम से भी जाना जाता है । वे मानते थे कि जब तक निर्धनों तथा पिछड़े लोगों का आर्थिक विकास नहीं किया जाएगा, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जाएगी, तब तक देश का समग्र विकास सम्भव नहीं है । अन्त्योदय एक विचार नहीं, एक पद्धति है, जिसका क्रियान्वयन होना आवश्यक है । उपाध्याय के अनुसार, "प्रत्येक भारतवासी हमारे रक्त और मांस का हिस्सा है । हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक हम हर एक को आभास न करा दें, कि पाश्चात्य सिद्धान्त स्वयं में एकांगी विकास को समेटे हुए थे, फिर चाहे वह समाजवाद हो, पूँजीवाद, साम्यवाद, उदारवाद हो अथवा व्यक्तिवाद ।इन सबका एक ही लक्ष्य उभरकर सामने आया वह है एकांगी विकास । देश का समग्र विकास करने के लिए एक नवीन सिद्धान्त, दर्शन अथवा विकास की आवश्यकता थी, जिसे उपाध्याय के समग्र मानवतावाद ने पूर्ण किया ।

    उनका मानना था कि पश्चिमी संस्कृति के उन्हीं तत्त्वों को अपनाओ जो विकास में सहायक हैं, परन्तु पश्चिमी संस्कृति से दूर रहे हों, क्योंकि यह मानव कल्याण के लिए नहीं, अपितु मानव की अवनति के लिए हैं । यह एकांगी विकास के लिए हैं और जब तक मानव का समग्र विकास नहीं होगा, तब तक सुख-शान्ति की कल्पना करना भी सम्भव नहीं । उपाध्याय कहते हैं 'एकात्म मानव दर्शन' राष्ट्रवाद के दो परिभाषित लक्षणों को पुनर्जीवित करता है । पहला चित्त (राष्ट्र की आत्मा) तथा दूसरा विराट (वह शक्ति जो शब्द को ऊर्जा प्रदान करे)।

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दीन दयाल उपाध्याय ( Deendayal Upadhyaya

दीन दयाल उपाध्याय ( Deendayal Upadhyaya 

दीन दयाल उपाध्याय ( Deendayal Upadhyaya ) 

    पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (जन्म: 25 सितम्बर 191611 फरवरी 1968) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

    दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता माने जाते हैं। उनका उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। उन्हें जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार माना जाता है। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।

   संस्कृतिनिष्ठा उपाध्याय के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सूत्र है। उनके शब्दों में-

भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।

वसुधैव कुटुम्बकम्भारतीय सभ्यता से प्रचलित है। इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार प्राप्त हैं। संस्कृति से किसी व्यक्ति, वर्ग, राष्ट्र आदि की वे बातें, जो उसके मन, रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता की सूचक होती हैं, पर विचार होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है।

   उपाध्याय जी पत्रकार होने के साथ-साथ चिन्तक और लेखक भी थे। उनकी असामयिक मृत्यु से यह बात स्पष्ट है कि जिस धारा में वे भारतीय राजनीति को ले जाना चाहते थे वह धारा हिन्दुत्व की थी। इसका संकेत उन्होंने अपनी कुछ कृतियों में भी दे दिया था। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के नाम नीचे दिये गये हैं-

·         दो योजनाएँ

·         राजनीतिक डायरी

·         राष्ट्र चिन्तन : यह पुस्तक दीनदयाल उपाध्याय द्वारा दिए गए भाषणों का संग्रह है ।

·         भारतीय अर्थ नीति : विकास की एक दिशा

·         भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन

·         सम्राट चन्द्रगुप्त

·         जगद्गुरु शंकराचार्य

·         एकात्म मानववाद (अंग्रेजी: Integral Humanism)

·         राष्ट्र जीवन की दिशा

·         एक प्रेम कथा

दीन दयाल उपाध्याय ( Deendayal Upadhyaya ) के दार्शनिक विचार 

डी डी उपाध्याय का समग्र मानववाद विचार

डी डी उपाध्याय का अद्वैत वेदान्त विचार

डी डी उपाध्याय का पुरुषार्थ विचार

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