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लोकसंग्रह ( Loksangrah) की अवधारणा

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लोकसंग्रह ( Loksangrah) की अवधारणा  लोकसंग्रह ( Loksangrah) की अवधारणा       भगवद्गीता में ' लोकसंग्रह ' के दर्शन का वर्णन हुआ है। यह ' स्थितप्रज्ञ ' की अवधारणा के साथ वर्णित हुआ है। लोकसंग्रह का अर्थ होता है ' मानवता के हित में किये गये कर्म। ' गीता में लोकसंग्रह के लिए कर्मयोग का उपदेश दिया गया है। लोकसंग्रह एक सामाजिक आदर्श है। गीता पुरुषोत्तम एवं मुक्तात्माओं को लोककल्याण हेतु प्रयासरत दिखाकर मानवमात्र को लोककल्याण हेतु प्रेरित करती है। लोकसंग्रह के लिए स्थितप्रज्ञ एक आदर्श पुरुष है जो जनसाधारण के कल्याण के लिए कार्य करता है परन्तु बन्धों में नहीं पड़ता है। ------------