Showing posts with label प्रमाण की आलोचना. Show all posts
Showing posts with label प्रमाण की आलोचना. Show all posts

Tuesday, September 28, 2021

चार्वाक के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

चार्वाक के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना

चार्वाक के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना

    चार्वाक के प्रमाण विचार की आलोचकों ने आलोचना की है। आलोचकों के अनुसार, चार्वाक अनुमान का खण्डन इसलिए करता है, क्योंकि उसकी मान्यता है कि अनुमान के आधार पर कभी कभी हमें अनिश्चित ज्ञान की प्राप्ति होती है। अत: अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए; जैसेसभी द्विपद बुद्धिमान हैं, इस पूर्व ज्ञान के पश्चात् और इसी के आधार पर जब हम किसी ऐसी वस्तु का प्रत्यक्ष करते हैं, जिसके दो पैर हैं, तो ऐसा सम्भव है कि हमें अनिश्चित ज्ञान की प्राप्ति हो जाए।

     चार्वाक की आलोचना करते हुए आलोचक कहते हैं कि केवल अनुमान के आधार पर ही क्यों प्रत्यक्ष के आधार पर भी हमें मिथ्या ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, तो फिर चार्वाक को भी प्रत्यक्ष के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए; जैसे---कभी-कभी अन्धेरा होने पर तथा अधिक दूरी के कारण रस्सी के स्थान पर साँप का अनुमान प्रत्यक्ष हो जाता है। साथ ही आलोचक कहते हैं कि चार्वाक स्वयं अनुमान को स्वीकार करता है, क्योंकि वह स्वयं कहता है कि अब तक जो प्रत्यक्ष प्राप्त हुए हैं तथा उनसे जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, वह सत्य है, जैसा अभी हुआ है, वैसा ही भविष्य में भी होगा। अत: चार्वाक का ज्ञान के सन्दर्भ में भविष्य सम्बन्धी मत अनुमान पर ही आधारित है।

     यद्यपि चार्वाक के प्रमाण विचार में विसंगतियाँ हैं। वह अनुमान आदि प्रमाणों का खण्डन करने में तर्कत: सफल नहीं हो पाया, तथापि उसके प्रमाण विचार की महत्ता है। चार्वाक के प्रमाण विचार ने अन्य भारतीय दार्शनिकों के समक्ष अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न कर दी, जिन समस्याओं के समाधान के लिए वे अग्रसर हुए, फलत: भारतीय दर्शन समृद्ध और विकसित हुआ तथा साथ ही उसमें समीक्षात्मक दृष्टिकोण का विकास हुआ।

---------------

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...