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चार्वाक के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer चार्वाक के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना चार्वाक  के प्रत्यक्षमात्र प्रमाण की आलोचना     चार्वाक के प्रमाण विचार की आलोचकों ने आलोचना की है। आलोचकों के अनुसार , चार्वाक अनुमान का खण्डन इसलिए करता है , क्योंकि उसकी मान्यता है कि अनुमान के आधार पर कभी कभी हमें अनिश्चित ज्ञान की प्राप्ति होती है। अत : अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए ; जैसे — सभी द्विपद बुद्धिमान हैं , इस पूर्व ज्ञान के पश्चात् और इसी के आधार पर जब हम किसी ऐसी वस्तु का प्रत्यक्ष करते हैं , जिसके दो पैर हैं , तो ऐसा सम्भव है कि हमें अनिश्चित ज्ञान की प्राप्ति हो जाए।      चार्वाक की आलोचना करते हुए आलोचक कहते हैं कि केवल अनुमान के आधार पर ही क्यों प्रत्यक्ष के आधार पर भी हमें मिथ्या ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है , तो फिर चार्वाक को भी प्रत्यक्ष के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए ; जैसे --- कभी - कभी अन्धेरा होने पर तथा अधिक दूरी के कारण रस्सी के स्थान पर