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वैशेषिक दर्शन में गुणों की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन में गुणों की अवधारणा  वैशेषिक दर्शन में गुणों की अवधारणा       वैशेषिक के अनुसार पंचमहाभूतों के पाँच गुण - रूप , रस , गन्ध , स्पर्श तथा शब्द तथा आत्मा के छ : गुण - इच्छा , द्वेष , प्रयत्न , सुख , दुःख तथा ज्ञान आदि तथा अन्य कुछ गुणों को मिलाकर कुल 24 गुणों का उल्लेख किया गया है। वैशेषिक दर्शन में गुणों की संख्या रूप रस गन्ध स्पर्श संख्या परिणाम पृथकत्व संयोग वियोग दूरी समीपता बुद्धि सुख दुःख इच्छा द्वेष प्रयत्न गुरुत्व द्रवत्व स्नेह संस्कार धर्म अधर्म शब्द ----------

जैन दर्शन में गुणों की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer जैन दर्शन में गुणों की अवधारणा जैन दर्शन में गुणों की अवधारणा      वस्तुओं के अनन्त धर्म होते हैं। धर्म किसी धर्मी का होता है , धर्म में जो लक्षण पाया जाता है , उसे धर्म कहते हैं। धर्मी का दूसरा नाम द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य में दो प्रकार के धर्म होते हैं स्वरूप या नित्य धर्म तथा आगन्तुक या परिवर्तनशील धर्म। स्वरूप धर्म में होते हैं , जो द्रव्य में सदा विद्यमान रहते हैं। उदाहरणस्वरूप चैतन्य आत्मा का स्वरूप धर्म है। आगन्तुक धर्म द्रव्य में सदा वर्तमान नहीं रहते , वे आते - जाते हैं। जैन दर्शन में स्वरूप धर्मों को गुण कहते हैं तथा आगन्तुक धर्मों को पर्याय कहते हैं। इस प्रकार द्रव्य वह है जिसमें गुण व पर्याय हों। ---------