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Tuesday, May 17, 2022

इकबाल का बुद्धि एवं अन्तः प्रज्ञा विचार

इकबाल का बुद्धि एवं अन्तः प्रज्ञा विचार 

इकबाल का बुद्धि एवं अन्तः प्रज्ञा विचार 

    इकबाल के अनुसार, धर्मिक सत्यों का ज्ञान साधारण बुद्धि से नहीं हो सकता इसके लिए एक सूझ की आवश्यकता होती है। यह सूझ ही अंतःप्रज्ञा है। मानव के जीवन में इसी अंतःप्रज्ञा का निरन्तर महत्वपूर्ण स्थान होता है। सत् के स्वरूप का ज्ञान इसी अंतःप्रज्ञा से ही सम्भव है। कुरान शरीफ में सत् के प्रत्यक्ष करने के ढंग को फ़ौद या कल्ब कहते है जिसे अंग्रेजी में Heart कहा जाता है। इकबाल के अनुसार यह Heart ही एक प्रकार की अंतःप्रज्ञा है।

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इकबाल की मानव एवं अतिमानव की अवधारणा

इकबाल की मानव एवं अतिमानव की अवधारणा 

इकबाल की मानव एवं अतिमानव की अवधारणा 

    इकबाल ने मानव और अतिमानव की अवधारणा अपने आध्यात्मिक गुरु जलालुद्दीन रूमी से ली है। उनके अनुसार अतिमानव की संकल्पना नैतिक है। इसका नैतिक दृष्टिकोण वैयक्तित्व अमरत्व की धारणा की और ले जाता है। इकबाल के अनुसार, जब मानव अपनी वैयक्तित्व संभावनाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति को देखता है तो यह अतिमानव की स्थति होती है।

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इकबाल का ईश्वर विचार

इकबाल का ईश्वर विचार 

इकबाल का ईश्वर विचार 

     इकबाल का ईश्वर विचार पूर्णतः इस्लाम के ईश्वर विचार पर आश्रित है। इस्लाम का ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और परमशुभ है। वह सृष्टिकर्ता है तथा वह सृष्टि की कार्यविधि का निर्णायक भी है। ईश्वर के संदर्भ में इकबाल कहते है कि ‘दैवी ज्ञान सृजनात्मक है क्योंकि कुछ भी ईश्वर बाह्य नहीं है। वह स्वयं अपने ज्ञान का विषय है। वह जैसा जनता है सृजन करता है और जैसा सृजन करता है, जनता है’। इकबाल के अनुसार, बौद्धिक प्रमाणों के द्वारा ईश्वर की स्थापना नहीं हो सकती। इसके लिए एक सूझ अर्थात अन्तर्दृष्टि की आवश्यकता है। जिस प्रकार अन्तर्दृष्टि आत्म स्वरूप को प्रकाशित करती है उसी प्रकार ईश्वर स्वरूप पर भी प्रकाश दे सकती है।

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इकबाल का आत्मा विचार

इकबाल का आत्मा विचार 

इकबाल का आत्मा विचार 

    इकबाल का आत्म विचार प्रसिद्ध सूफी उक्ति ‘अनलहक’ अर्थात मैं ही सृजनात्मक सत्य हूँ, से प्रेरित है। इकबाल आत्मा के लिए ‘Self’ शब्द का प्रयोग करते है। इकबाल Self शब्द से Ego अर्थात शरीरधारी अहं से आत्मा को भिन्न करते है। वे कहते है कि ‘आत्मा (Self) शरीर (Ego) से भिन्न कुछ है’। इसी कारण आत्मा से शरीर से भिन्न कुछ का बोध होता है। इकबाल यह स्वीकारते है कि आत्मा सभी मानवीय क्रियाओं को संगठित रखने का आन्तरिक रूप है, परन्तु वे यह नहीं मानते कि आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न है। उनके अनुसार आत्मा शरीरिक क्रियाओं को संगठित रखने का आधार है। इकबाल का कहना है कि अहंरूप आत्मा की वास्तविकता को समझने के लिए एक सूझ की आवश्यकता है। 

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मुहम्मद इकबाल ( Muhammad Iqbal )

मुहम्मद इकबाल ( Muhammad Iqbal ) 

मुहम्मद इकबाल ( Muhammad Iqbal ) 

    20 वीं शताब्दी की भारतीय विचारधारा में सर मुहम्मद इकबाल ने अपनी कविता के माध्यम से इस्लामिक दर्शन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उनके दार्शनिक चिन्तन का लक्ष्य इस्लाम के सत्यों की अर्थ-संरचना को प्रकट करना थ। 

मुहम्मद इकबाल ( Muhammad Iqbal ) के दार्शनिक विचार 

इकबाल का आत्मा विचार

इकबाल का ईश्वर विचार

इकबाल की मानव एवं अतिमानव की अवधारणा

इकबाल का बुद्धि एवं अन्तः प्रज्ञा विचार

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विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...