Showing posts with label समवाय की अवधारणा. Show all posts
Showing posts with label समवाय की अवधारणा. Show all posts

Saturday, October 2, 2021

वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा 

वैशेषिक दर्शन में समवाय की अवधारणा 

     यह नित्य सम्बन्ध सूचक पदार्थ है। यह नित्य सम्बन्ध दो ऐसे पदार्थों में पाया जाता है जो सदैव साथ साथ रहते हैं। इनमें से एक पदार्थ ऐसा होता है जो दूसरे पर आश्रित होकर रहता है। ये दोनों पदार्थ एक-दूसरे से अपृथक् होते हैं; जैसे-द्रव्य और गुण, भाग और पूर्ण, क्रियावान और क्रिया, विशेष और सामान्य, नित्य द्रव्य और विशेष आदि। वैशेषिकों ने समवाय को एक भाव पदार्थ के रूप में स्वीकार किया है तथा कहा है कि जिन दो पदार्थों के बीच समवाय सम्बन्ध पाया जाता है यदि उन्हें पृथक् किया जाए तो उनमें से एक का विनाश अपरिहार्य है।

------------


विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...