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जैन दर्शन में अजीव द्रव्य का स्वरूप

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer जैन दर्शन में अजीव द्रव्य का स्वरूप  जैन दर्शन में अजीव द्रव्य का स्वरूप         अस्तिकाय के दो प्रकारों में यह द्वितीय है , इसे जड़ भी कहते हैं। जीवों का निवास स्थान यह जगत है , जगत जड़द्रव्यों से बना हुआ है। कुछ जड़द्रव्यों के कारण जीव शरीर धारण करते हैं और कुछ बाह्य परिस्थिति का निर्माण करते हैं। अजीव द्रव्य पाँच होते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित है - पुद्गल आकाश काल धर्म अधर्म पुद्गल       जैन दर्शन में पुद्गल जड़तत्त्व या भौतिक तत्त्व है। तत्त्व रूप में पुद्गल का प्रयोग बौद्ध दर्शन में जीव के लिए आया है , किन्तु जैन दर्शन में यह भौतिक तत्त्व के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है , यह विश्व का भौतिक आधार है। स्पर्श , रस , गन्ध और वर्ण पुद्गल के गुण हैं। व्युत्पत्ति के अनुसार पुद्गल वह है , जिसका संयोग और विभाग हो सके। इस परिभाषा का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि पुद्गल के दो प्रकार हैं - अणुरूप और स्कन्ध रूप।     पुद्