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बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)

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  बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya) बौद्ध दर्शन के संप्रदाय (Sampradaya)      महात्मा बुद्ध के अनुयायियों की संख्या आगे चलकर बहुत बढ़ गई और ये कई संप्रदायों में विभक्त हो गए। धार्मिक मतभेद के कारण बौद्ध धर्म की दो शाखाएं कायम हुईं जो हीनयान तथा महायान के नाम से प्रसिद्ध हैं। हीनयान का प्रचार भारत के दक्षिण में हुआ। इसका अधिक प्रचार श्रीलंका थाईलैंड में है। पालि त्रिपिटक ही हीनयान के प्रधान ग्रंथ हैं। महायान का प्रचार अधिकतर उत्तर के देशों में हुआ है , इसके अनुयाई तिब्बत , चीन तथा जापान में अधिक पाए जाते हैं। महायान का दार्शनिक विवेचन संस्कृत में हुआ है। अतः इसके ग्रंथों की भाषा संस्कृत है।     बुद्ध निर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में संपन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर (स्थविरवादी) भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को पापभिक्खु कह कर संघ से बाहर निकाल दिया था। उन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को महासांघिक और थेरवादियों को हीनसांधिक नाम दिया। जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण किया। थेरवाद से महायान संप्रदायों के क्रमशः विकास में कई शताब्दियाँ लगी