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अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि      जैन दर्शन, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग और मीमांसा दर्शन ने आत्मा को अनुमान से सिद्ध करने का प्रयास किया है और आत्मा को शरीर। इंद्रियों और मन से भिन्न माना है परन्तु वेदान्त आत्मसत्ता की सिद्धि में अनुमान का प्रयोग नहीं करता। आत्मा के विषय में आचार्य शंकर लिखते है कि “उच्यते, न तावदयमेकान्तेनाविषयः, अस्मत्प्रत्यय विषयत्वात, अपरोक्षात्वाच्च प्रत्यगात्प्रसिद्धे” अर्थात आत्मा एकदम ही ज्ञान का विषय ना होकर वह अस्मत्प्रत्यय अर्थात “मैं” का विषय है। यदि आत्मा को अपरोक्ष न माने तो उसके प्रथित अर्थात ज्ञात न होने से सारा जगत् भी प्रथित न हो सकेगा और सब कुछ अंध अर्थात अप्रकाश हो जाएगा। जगत् जड़ है वह स्वतः प्रकाशित नहीं है। यदि आत्मा को स्वतः प्रकाशित न माने तो जगत् में भी प्रकाश न मिल सकेगा। अतः आत्मा की सत्ता अनुभव या अनुभूति कआ विषय है। आचार्य शंकर लिखते है कि “आत्मत्वाच्ख्चात्मनो नि