Showing posts with label आत्मा की सिद्धि. Show all posts
Showing posts with label आत्मा की सिद्धि. Show all posts

Thursday, October 14, 2021

अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि

अद्वैत वेदान्त में आत्मा की सिद्धि

     जैन दर्शन, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग और मीमांसा दर्शन ने आत्मा को अनुमान से सिद्ध करने का प्रयास किया है और आत्मा को शरीर। इंद्रियों और मन से भिन्न माना है परन्तु वेदान्त आत्मसत्ता की सिद्धि में अनुमान का प्रयोग नहीं करता। आत्मा के विषय में आचार्य शंकर लिखते है कि “उच्यते, न तावदयमेकान्तेनाविषयः, अस्मत्प्रत्यय विषयत्वात, अपरोक्षात्वाच्च प्रत्यगात्प्रसिद्धे” अर्थात आत्मा एकदम ही ज्ञान का विषय ना होकर वह अस्मत्प्रत्यय अर्थात “मैं” का विषय है। यदि आत्मा को अपरोक्ष न माने तो उसके प्रथित अर्थात ज्ञात न होने से सारा जगत् भी प्रथित न हो सकेगा और सब कुछ अंध अर्थात अप्रकाश हो जाएगा। जगत् जड़ है वह स्वतः प्रकाशित नहीं है। यदि आत्मा को स्वतः प्रकाशित न माने तो जगत् में भी प्रकाश न मिल सकेगा। अतः आत्मा की सत्ता अनुभव या अनुभूति कआ विषय है। आचार्य शंकर लिखते है कि “आत्मत्वाच्ख्चात्मनो निराकरण शंकानुपपत्तिः। नहात्मागन्तुकः कस्यचित् स्वयं सिद्धत्वात् न ह्यात्मात्मनः प्रमाणभपेक्ष्य सिध्यति। तस्य हि प्रत्यक्षादीनि प्रमाणान्यप्रसिद्धप्रमेय सिद्धय उपदीयते” अर्थात आत्मा होने के कारण ही आत्मा का निराकरण सम्भव नहीं है। आत्मा बाहर की वस्तु नहीं, वह स्वयंसिद्ध है। आत्मा प्रमाणों से सिद्ध नहीं होती क्योंकि प्रत्यक्षादि प्रमाणों का प्रयोग आत्मा अपने से भिन्न पदार्थों की सिद्धि में करती है। आत्मा तो प्रमाणादि व्यवहार का आश्रय है और प्रमाणों के व्यवहार से पहले ही सिद्ध है। इसके आगे आचार्य कहते है कि “आत्मा वर्तमान स्वभाव” है उसका कभी अन्यथाभाव नहीं होता। प्रथम सूत्र की व्याख्या करते हुए आचार्य शंकर कहते है कि “सर्वस्यात्मत्वाच्च ब्रह्मास्तित्वप्रसिद्धिः” अर्थात सबकी आत्मा होने के कारण ब्रह्म का अस्तित्व प्रसिद्ध है अर्थात “आत्मा ही ब्रह्म है”।

------

[प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक कान्ट ने ट्रॉन्सेंडेन्टल युक्ति का आविष्कार किया जो कहती है कि “अनुभव की उत्पत्ति अथवा सिद्धि के लिए आवश्यक है कि उसकी यथार्थता स्वीकार करनी चाहिए”]   

-------------


विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...