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सृष्टि सिद्धान्त ( Creation Theory )

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  सृष्टि सिद्धान्त ( Creation Theory ) जगत   विश्व , संसार , प्रपञ्च इत्यादि जगत के पर्याय हैं। मुण्डकोपनिषद् ( 1 . 1 . 6 ) में कहा गया है – यथोर्णनाभिः सृजते गृह्यते च , यथा पृथिव्यामोषधयः सम्भवन्ति। यथा सतः पुरुषात्केशलोमानि , तथाक्षरात्सम्भवतीह विश्वम् ॥ अर्थात् जिस प्रकार मकड़ी जाले बनाती है और निगल जाती है , जिस प्रकार पृथ्वी में औषधियां उत्पन्न होती हैं और जिस प्रकार जीवित मनुष्य के केश उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार अक्षर ब्रह्म से यह समस्त जगत उत्पन्न होता है। श्रीमद् भागवत् ( 1 . 12 . 36 ) में कहा गया है कि – यथाक्रीडोपस्कराणां संयोगविगमाविह | इच्छया क्रीडतु: स्यातां तथैवसेच्छया नृणाम् ।। तात्पर्य यह कि परमेश्वर इच्छा ही जगत की उत्पत्ति का हेतु है। सांख्य दर्शन के अनुसार- “जगत्सत्यत्वम् दृष्टकारण जन्यत्वाद्वाधकाभावात् ” (सां० सू० , 6.42)। तात्पर्य यह कि जगत तीन गुणों (सत्व , रज , तम) का व्यवसाय-व्यवसेय परिणाम है। रज्जु में प्रतीयमान सर्प की तरह यह अलीक नहीं बल्कि पूर्ण सत्य है। गीता में प्रतिपादित जगत की सत्यता सांख्य के अनुकूल गीता ( 36 . 8 ) में कहा गया है- “ असत्यमप्र

सांख्य दर्शन में प्रकृति विचार

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन में प्रकृति विचार  सांख्य दर्शन में प्रकृति विचार      सांख्य दर्शन में प्रकृति का शाब्दिक अर्थ है सृष्टि से पूर्व अर्थात् प्रकृति वस्तुतः जगत की समस्त वस्तुओं से पूर्व है। पुरुष के अतिरिक्त संसार की समस्त वस्तुएँ इसी प्रकृति से उत्पन्न हुई हैं। स्वरूपत : प्रकृति निरवयव , शाश्वत , अदृश्य , अचेतन , किन्तु सक्रिय है। प्रकृति की तीन विधाएँ हैं , जिन्हें गुण कहा जाता है। ये गुण तीन प्रकार के हैं तथा  प्रत्येक गुण के तीन उपगुण हैं ; यथा - सत् गुण सुखात्मक , हल्का , ज्ञानात्मक ; रज् गुण दुःखात्मक , गति , उत्तेजक ; तम् गुण भारी , अवरोध तथा अज्ञान। स्पष्ट है कि प्रकृति त्रिगुणात्मक है , अत : प्रकृति से उत्पन्न होने के कारण जगत की  समस्त वस्तुएँ त्रिगुणात्मक हैं।     सांख्य दर्शन में प्रकृति को प्रकृति के अतिरिक्त विभिन्न नामों से सम्बोधित किया गया है ; जैसे - सांख्य दर्शन में प्रकृति को ' प्रधान ' कहा गया है , क्योंकि वह विश्व का प्