Showing posts with label स्थितिप्रज्ञ. Show all posts
Showing posts with label स्थितिप्रज्ञ. Show all posts

Thursday, May 12, 2022

स्थितिप्रज्ञ ( Sthitipragy ) की अवधारणा

स्थितिप्रज्ञ ( Sthitipragy ) की अवधारणा 

स्थितिप्रज्ञ ( Sthitipragy ) की अवधारणा 

    जो मनुष्य संतुष्ट, भयमुक्त, चिंता रहित एवं प्रसन्नतापूर्वक कर्मलीन है वह स्थितिप्रज्ञ है। इस सम्बन्ध में गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है –

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितिप्रज्ञस्तदोयते ।।

अर्थात जो मनुष्य जिस समय में अपने मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं के ऊपर विजय प्राप्त कर, अपनी आत्मा से, अपनी आत्मा में संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितिप्रज्ञ हो जाता है।

------------


विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...