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के सी भट्टाचार्य का स्वतंत्रता के रूप में ज्ञात

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के सी भट्टाचार्य का स्वतंत्रता के रूप में ज्ञात  के सी भट्टाचार्य का स्वतंत्रता के रूप में ज्ञात      कृष्णचन्द के अनुसार , आत्मपरकता की स्वतन्त्रता अनुभूति का अर्थ आत्म के अपने वास्तविक आत्म-रूप की अनुभूति , अपनी ' उन्मुक्ता ' की अनुभूति है। यह अनुभूति विभिन्न स्तरों से होते हुए अग्रसर होती है। इन स्तरों को क्रमिक कहा गया है , क्योंकि एक स्तर के निषेध के आधार पर आत्मपरकता दूसरे स्तर तक पहुंचती है। यह क्रमिक प्रक्रिया तब तक चलती रहती है , जब तक निषेध योग्य कोई रूप बचा नहीं रहा जाता। सामान्यतः साधारण मनुष्य एक विशिष्ट वातावरण में वस्तुओं से घिरा रहता है। यह उसके आत्म रूप पर एक प्रकार का घेरा है , क्योंकि उसी सीमा के अन्दर ही वह क्रियाशील हो पाता है। इसी क्षेत्र में उसे स्वतन्त्रता का भान रहता है , किन्तु यह स्वतन्त्रता भी उसे घेरे तक सीमित रखती है। अतः नैतिकता एवं स्वतन्त्रता के विचार की विवेचना करते हुए कृष्णचन्द्र ने दो प्रकार की स्वतन्त्रता का उल्लेख किया है - संकल्पनात्मक स्वतन्त्रता तथा तात्विक स्वतन्त्रता। यहाँ यह भी कहा है कि अनुभूति की प्रक्रिया पहले प्रकार को स्वतन्त्रत