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जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार

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जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार  जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार        कृष्णमूर्ति की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में अज्ञात को जानने की इच्छा होती है , परन्तु क्या हमारे भीतर अज्ञात को जानने की प्रेरणा है ? यदि हम उसे जानते नहीं , तो पता कैसे लगा सकते हैं। यदि हमारा मन अज्ञात को नहीं खोज सकता , तो उसे जानेगा कैसे ? कृष्णमूर्ति के अनुसार , हमारी समस्या यह नहीं है कि हमें अज्ञात की खोज की ओर ले जाने वाली कौन-सी भीतरी प्रेरणा है। वह तो काफी स्पष्ट है। अधिक सुरक्षित , अधिक स्थायी , अधिक प्रतिष्ठित , पीड़ा से , विभ्रम से बचने की हमारी अपनी आकांक्षा ही वह प्रेरणा है , यह बिल्कुल स्पष्ट है। जब इस प्रकार की प्रेरणा , इस प्रकार की ललक होती है , तब हम बुद्ध में , ईसा में , किसी राजनीतिक नारेबाजी में अथवा इसी प्रकार की किसी और बात में एक अद्भुत पलायन , एक अद्भुत शरण पा लेंगे। लेकिन वह यथार्थ नहीं है। अब अविज्ञेय नहीं है , अज्ञात नहीं है। इसलिए अज्ञात के लिए व्यग्रता का अन्त होना जरूरी है। मन को स्वयं को ज्ञात के रूप समझ लेना जरूरी है , क्योंकि वह सिर्फ उसे ही