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वैशेषिक दर्शन में सामान्य की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन में सामान्य की अवधारणा  वैशेषिक दर्शन में सामान्य की अवधारणा      सामान्य वह पदार्थ है जिसके कारण एक ही प्रकार के विभिन्न व्यक्तियों या वस्तुओं को एक जाति के अन्दर रखा जाता है। एक ही वर्ग के व्यक्तियों या वस्तुओं का एक सामान्य होता है , कभी भी अकेली वस्तु का सामान्य नहीं हो सकता ; जैसे - आकाश। सामान्य द्रव्य , गुण और कर्म में रहता है विशेष , समवाय तथा अभाव का सामान्य नहीं होता।      सामान्य का ज्ञान सामान्य लक्षण अलौकिक प्रत्यक्ष द्वारा प्राप्त होता है। यद्यपि सामान्य वास्तविक है तथापि यह अन्य व्यक्तियों और वस्तुओं के समान देश और काल में स्थित नहीं है। यह सत्ताभाव मात्र है अस्तित्व नहीं। व्यापकता की दृष्टि से सामान्य की तीन श्रेणियाँ हैं - पर सामान्य , अपर सामान्य तथा पर - अपर सामान्य। पर सामान्य      संसार की प्रत्येक वस्तु में सर्वाधिक व्यापक सामान्य है। इसके अन्तर्गत अस्तित्व या सत् को सम्मिलित किया जाता