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आचार्य शंकर अनिर्वचनीय ख्यातिवाद

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer आचार्य शंकर अनिर्वचनीय ख्यातिवाद आचार्य शंकर अनिर्वचनीय ख्यातिवाद अनिर्वचनीय ख्यातिवाद     इस सिद्धान्त के प्रतिपादक शंकराचार्य हैं। अनिर्वचनीय का आशय होता है , जिसका निर्वचन न हो सके अर्थात् जिसके वचन विन्यास के द्वारा स्पष्टत : कुछ कहा न जा सके एवं जो अभिव्यक्ति से परे हो। इनके अनुसार भ्रम का विषय न सत् है न असत्। सत् नहीं है , क्योंकि वह साँप नहीं है , रस्सी है तथा असत् भी नहीं है , क्योंकि प्रत्यक्षतः साँप की अनुभूति हो रही है। चूंकि वचन हमेशा दो ही प्रकार के होते हैं या तो कोई वचन सत् होगा या असत् होगा। चूँकि साँप न तो सत् है और न ही असत् है , इसलिए यह अनिर्वचनीय है।     भ्रम का कारण अविद्या है जो दो रूपों - आवरण एवं विक्षेप में अपना कार्य करती है। आवरण रूप के अनुसार रज्जु - सर्प भ्रम में अविद्या पहले रस्सी पर साँप का आरोप कर उसकी प्रतीति हमें साँप के रूप में कराती है। यह रस्सी का सर्प के रूप में अन्यथाज्ञान या मिथ्या ज्ञान है अथवा सर्प का