Showing posts with label संप्रभुता. Show all posts
Showing posts with label संप्रभुता. Show all posts

Monday, May 30, 2022

कौटिल्य ( Chanakya ) की संप्रभुता

कौटिल्य ( Chanakya ) की संप्रभुता 

 कौटिल्य ( Chanakya ) की संप्रभुता 

    चाणक्य अर्थात कौटिल्य को ‘भारत का मैकियावाली’ कहा जाता है। इन्हें अर्थशास्त्र का प्रणेता कहा जाता है। इनका यह ग्रन्थ अन्य पुरुष (Third Person) की शैली में लिखा गया है। इनका एक अन्य नाम विष्णुगुप्त भी है। कौटिल्य ने अपनी संप्रभुता सम्बन्धी विचार में राजा या राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या की है जो कि 17वीं शताब्दी के यूरोप में प्रचलित ‘सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धांत’ से मिलता-जुलता है। कौटिल्य ने संप्रभुता को राज्य की विशेषता कहा है। इसी के कारण राज्य सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ समुदाय है। अन्य सभी व्यक्ति व व्यक्तियों का प्रत्येक समुदाय इसके अधीन है। कौटिल्य ने राज्य और समाज को प्रायः समव्यापक माना है। उनके अनुसार राज्य की शक्ति सर्वोपरि है। व्यक्ति राज्य के लिए है, राज्य व्यक्ति के लिए नहीं है।

-------------


विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...