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Saturday, October 2, 2021

वैशेषिक दर्शन में द्रव्य की अवधारणा

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वैशेषिक दर्शन में द्रव्य की अवधारणा 

वैशेषिक दर्शन में द्रव्य की अवधारणा 

     द्रव्य, गुण तथा क्रिया का आधार तथा समस्त सावयव वस्तुओं का उपादान कारण है। वैशेषिकों के अनुसार द्रव्य 9 प्रकार के हैं-

    पंचमहाभूत, (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु तथा आकाश)

    दिक्-काल,

    मन और

    आत्मा।

     उल्लेखनीय है कि पंचमहाभूतों-पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु तथा आकाश में से आकाश के परमाणु नहीं होते, शेष चार भूतों के परमाणु होते हैं तथा ये परमाणु नित्य हैं, किन्तु इनके मिलने से जो कुछ भी बनता है वह अनित्य है अर्थात् उत्पन्न और नष्ट होता है। संसार की समस्त वस्तुएँ इन्हीं भूतों के संयोग से उत्पन्न हुई हैं तथा अनित्य हैं। वस्तु के नष्ट होने पर भी परमाणु नष्ट नहीं होते, क्योंकि परमाणु नित्य हैं। वैशेषिकों के अनुसार, द्रव्य पर ही 'गुण' तथा कर्म ये दोनों पदार्थ निर्भर करते हैं।

वैशेषिक दर्शन में पदार्थ एवं द्रव्य

पदार्थ                      

द्रव्य

द्रव्य                       

पृथ्वी

गुण                        

जल

कर्म                        

तेज

सामान्य                   

वायु

विशेष                     

आकाश

समवाय                    

काल

अभाव                      

दिक

 

आत्मा

 

मन


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Tuesday, September 28, 2021

जैन दर्शन में द्रव्य की अवधारणा

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जैन दर्शन में द्रव्य की अवधारणा

जैन दर्शन में द्रव्य की अवधारणा

    द्रव्य गुणों का आधार है। जैन दर्शन में द्रव्य को धर्मी भी कहते हैं। धर्मी उसे कहते हैं जिसमें धर्म रहता है और दर्शनों की भाषा में धर्म गुण का पर्यायवाची है। प्रत्येक द्रव्य सदसत् धर्मों का आधार होता है। उसमें कुछ ऐसे आवश्यक गुण या धर्म होते हैं, जो उनकी सत्ता के लिए नितान्त आवश्यक होते हैं। इन्हीं के आधार पर हम उन्हें तद्द रूप में जानते और पहचानते हैं।

    जैन दर्शन में द्रव्य के दो भेद किए गए हैं-अस्तिकाय और अनस्तिकाय। अस्तिकाय का अर्थ है-बहुप्रदेश व्यापी और अनस्तिकाय का अर्थ है-एक प्रदेश व्यापी। जैन दर्शन केवल काल को ही अनस्तिकाय या एक प्रदेश व्यापी मानता है, शेष सभी को अस्तिकाय या बहुप्रदेश व्यापी।

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