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जे कृष्णमूर्ति का विकल्पहीन जागरूकता सिद्धान्त

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जे कृष्णमूर्ति का विकल्पहीन जागरूकता सिद्धान्त  जे कृष्णमूर्ति का विकल्पहीन जागरूकता सिद्धान्त      कृष्णमूर्ति का मत है कि अज्ञात का पता लगाने का श्रेष्ठ तरीका यह है कि हम मौन हो जाएँ। जब हम कुछ पाने की चाह में खुद को भविष्य में प्रक्षेपित न करें , जब मन वास्तव में , शान्त होगा , तब अज्ञात अस्तित्व में आता है। उसे खोजना नहीं पड़ता , खोजना मूर्खता है। खोजने से कभी मिलता भी नहीं। आज तक कभी किसी को मिला भी नहीं। अतः इसके लिए शान्त होकर भीतर ही उतरना होगा , तब अज्ञात अस्तित्ववान होगा। हम किसी अनजाने को आमन्त्रित नहीं करते , बल्कि ज्ञात को आमन्त्रित करते हैं। अविज्ञेय को , अज्ञात को जानने के लिए मन को भटकने की आवश्यकता नहीं है। वह जो भी है , उसके साथ होना होता है। ध्यान-धारणा इत्यादि से मन निश्चल नहीं हो पाता , इसके लिए अपने में उत्पन्न विनम्र को समझना होगा , तभी आनन्द प्रकट हो पाएगा और वह अज्ञात रहस्यमय ढंग से प्रकट हो पाएगा। -----------

जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण

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जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण  जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण      कृष्णमूर्ति के अनुसार , होने का अर्थ ही है सम्बन्धित होना। सम्बन्धित जीवन नाम की कोई चीज नहीं है। यह उचित सम्बन्ध का अभाव है जो द्वन्द्वों , कष्ट और कलह को जन्म देता है। क्रान्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं को समझना होगा। कृष्णमूर्ति के अनुसार , आत्म विश्लेषण से अभिप्राय अपने अन्दर देखना , अपना परीक्षण करना है। व्यक्ति अपना आत्मविश्लेषण इसलिए करता है , ताकि वह बेहतर हो सके। हम कुछ बनने के लिए आत्मविश्लेषण करते हैं , अन्यथा हम इसके झंझट में नहीं पड़ते। कृष्णमूर्ति के अनुसार , यदि जो आप हैं उससे कुछ भिन्न होने की , परिवर्तन की , रूपान्तरण की आकांक्षा आप में न हो , तो आप अपना परीक्षण नहीं करेंगे। आत्म-विश्लेषण की प्रक्रिया हमें विमुक्त नहीं करती , क्योंकि वह तो ' जो है ' उसे कुछ ऐसी चीज में जो वह नहीं है , रूपान्तरित करने की प्रक्रिया है। स्पष्ट है जब हम आत्म-विश्लेषण करते हैं , जब उस विशेष क्रिया में संलग्न होते हैं , तो ठीक ऐसा ही होता है। आत्म-विश्लेषण में सदा एक संचयी प्रक्रिया निहित है। किसी स्थिति को बदलने क

जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार

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जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार  जे कृष्णमूर्ति का ज्ञाता से स्वतंत्रता विचार        कृष्णमूर्ति की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में अज्ञात को जानने की इच्छा होती है , परन्तु क्या हमारे भीतर अज्ञात को जानने की प्रेरणा है ? यदि हम उसे जानते नहीं , तो पता कैसे लगा सकते हैं। यदि हमारा मन अज्ञात को नहीं खोज सकता , तो उसे जानेगा कैसे ? कृष्णमूर्ति के अनुसार , हमारी समस्या यह नहीं है कि हमें अज्ञात की खोज की ओर ले जाने वाली कौन-सी भीतरी प्रेरणा है। वह तो काफी स्पष्ट है। अधिक सुरक्षित , अधिक स्थायी , अधिक प्रतिष्ठित , पीड़ा से , विभ्रम से बचने की हमारी अपनी आकांक्षा ही वह प्रेरणा है , यह बिल्कुल स्पष्ट है। जब इस प्रकार की प्रेरणा , इस प्रकार की ललक होती है , तब हम बुद्ध में , ईसा में , किसी राजनीतिक नारेबाजी में अथवा इसी प्रकार की किसी और बात में एक अद्भुत पलायन , एक अद्भुत शरण पा लेंगे। लेकिन वह यथार्थ नहीं है। अब अविज्ञेय नहीं है , अज्ञात नहीं है। इसलिए अज्ञात के लिए व्यग्रता का अन्त होना जरूरी है। मन को स्वयं को ज्ञात के रूप समझ लेना जरूरी है , क्योंकि वह सिर्फ उसे ही

जे कृष्णमूर्ति का विचार प्रत्यय

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जे कृष्णमूर्ति का विचार प्रत्यय  जे कृष्णमूर्ति का विचार प्रत्यय      कृष्णमूर्ति के विचारों , जो गहरे ध्यान , श्रेष्ठ ज्ञान एवं उच्च व्यवहार की उपज हैं , ने दुनिया के समस्त दार्शनिकों , धार्मिकों एवं मनोवैज्ञानिकों को प्रभावित किया। वे कहते थे कि आपने जितनी भी परम्परा , देश एवं काल से जानी है , उससे मुक्त होकर ही आप सच्चे अर्थों में मानव बन पाएंगे। जीवन का परिवर्तन मात्र इसी बोध में निहित है कि आप स्वतन्त्र रूप से सोचते हैं , कि नहीं। आप अपनी सोच पर ध्यान देते हैं , या नहीं। उनके अनुसार विश्व को बेहतर बनाने के लिए यथार्थवादी एवं स्पष्ट मार्ग पर चलना चाहिए। जे. कृष्णमूर्ति कहते हैं - आपके भीतर कुछ भी नहीं होना चाहिए , तब आप एक साफ एवं स्पष्ट आकाश देखने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप धरती का भाग नहीं आप स्वयं आकाश हैं। यदि आप कुछ भी हैं , तो फिर आप कुछ नहीं। उन्होंने ' ऑर्डर ऑफ दि स्टार ' को भंग करते हुए कहा कि अब से कृपा करके याद रखें कि मेरा कोई शिष्य नहीं है , क्योंकि गुरु तो सब को दबाता है। सच तो स्वयं तुम्हारे भीतर है। सच को ढूंढने के लिए मनुष्य को सभी बन्धनों से स्वतन्त्र हो

जिद्दू कृष्णमूर्ति ( Jiddu Krishnamurti )

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जिद्दू कृष्णमूर्ति ( Jiddu Krishnamurti ) जिद्दू कृष्णमूर्ति ( Jiddu Krishnamurti )       जिद्दू कृष्णमूर्ति (12 मई 1895 – 17 फरवरी , 1983) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों के लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति ( psychological revolution), मस्तिष्क की प्रकृति , ध्यान , मानवी सम्बन्ध , समाज में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लायें आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वे सदा इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक मानव को मानसिक क्रान्ति की जरूरत है और उनका मत था कि इस तरह की क्रान्ति किन्हीं वाह्य कारक से सम्भव नहीं है चाहे वह धार्मिक , राजनैतिक या सामाजिक कुछ भी हो। जिद्दू कृष्णमूर्ति ( Jiddu Krishnamurti ) की  रचनायें कृष्णामूर्ति एक एैसे दाशर्निक हैं , जिन्होंने आत्मज्ञान पर विशेष बल दिया। हिन्दी भाषा में उनके अनुवादित मुख्य रचनायें हैं- Ø   शिक्षा और संवाद Ø   शिक्षा और जीवन का तात्पर्य Ø   शिक्षा केन्द्रों के नाम पत्र Ø   सीखने की कला Ø   ध्यान Ø   विज्ञान एवं सृजनशीलता Ø   स्कूलों के नाम पत्र Ø   परम्परा जिसने अपनी आत्मा खो दी Ø   प्रेम Ø   ध्यान में मन जिद्दू कृष्णमूर्ति (