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सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा  सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा      सांख्य दर्शन में भी अन्य भारतीय दर्शनों ( चार्वाक दर्शन को छोड़कर ) की भाति मोक्ष को परम आध्यात्मिक लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यहाँ मोक्ष से आशय ' समस्त दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति ' मात्र से है न कि आनन्दपूर्ण अवस्था से। अन्यों की भाँति सांख्य भी संसार को दु : खात्मक मानते हैं।     सांख्य के अनुसार , संसार में तीन प्रकार के दुःख पाए जाते हैं - आध्यात्मिक दुःख अधिभौतिक दु : ख तथा अधिदैविक दु : ख ; इन तीन प्रकार के दु : खों को ही ' त्रिविध ताप ' की संज्ञा दी गई है तथा इनसे मुक्त होने को ही जीवन के परम लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यहाँ मोक्ष के लिए अपवर्ग शब्द का प्रयोग किया गया है।     अधिभौतिक दुःख बाह्य वस्तुओं ; जैसे — बाढ़ , भूकम्प , तूफान आदि प्राकृतिक आपदाएँ , चोट लगना , घाव हो जाना इत्यादि अधिभौतिक दुःख हैं