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शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion )

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शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion ) शिक्षा और धर्म ( Eucation and Religion )     प्राचीन भारत में शिक्षा और धर्म को एक दूसरे से भिन्न नहीं समझा जाता था। शिक्षा को ही मनुष्य जीवन के अन्तिम उद्देश्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति का साधन माना जाता था। आदिगुरु शंकराचार्य के अनुसार, “सः विद्या या विमुक्तये” अर्थात शिक्षा वह है जो मुक्ति दिलाए। भारतीय मनीषी स्वामी विवेकानन्द भी शिक्षा को धर्म से अलग नहीं समझते थे। उनके अनुसार “मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है”। ऋषि देव दयानंद के अनुसार सीखने की प्रक्रिया गर्भावस्था से प्रारम्भ होती है और जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। उन्होंने शिक्षा को आन्तरिक शुद्धि के रूप में माना है। स्वामी दयानंद के अनुसार ‘‘ शिक्षा वह है , जिससे मनुष्य-विद्या आदि शुभ गुणों को प्राप्त करें और अविद्या आदि दोषों को त्याग कर सदैव आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सके। ’’ भारतीय शिक्षा की विकास विकास यात्रा Ø   राष्ट्रीय शिक्षा नीति , 1968 स्वतंत्र भारत में शिक्षा पर यह पहली नीति कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी। शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का