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जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण

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जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण  जे कृष्णमूर्ति का आत्मा-विश्लेषण      कृष्णमूर्ति के अनुसार , होने का अर्थ ही है सम्बन्धित होना। सम्बन्धित जीवन नाम की कोई चीज नहीं है। यह उचित सम्बन्ध का अभाव है जो द्वन्द्वों , कष्ट और कलह को जन्म देता है। क्रान्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं को समझना होगा। कृष्णमूर्ति के अनुसार , आत्म विश्लेषण से अभिप्राय अपने अन्दर देखना , अपना परीक्षण करना है। व्यक्ति अपना आत्मविश्लेषण इसलिए करता है , ताकि वह बेहतर हो सके। हम कुछ बनने के लिए आत्मविश्लेषण करते हैं , अन्यथा हम इसके झंझट में नहीं पड़ते। कृष्णमूर्ति के अनुसार , यदि जो आप हैं उससे कुछ भिन्न होने की , परिवर्तन की , रूपान्तरण की आकांक्षा आप में न हो , तो आप अपना परीक्षण नहीं करेंगे। आत्म-विश्लेषण की प्रक्रिया हमें विमुक्त नहीं करती , क्योंकि वह तो ' जो है ' उसे कुछ ऐसी चीज में जो वह नहीं है , रूपान्तरित करने की प्रक्रिया है। स्पष्ट है जब हम आत्म-विश्लेषण करते हैं , जब उस विशेष क्रिया में संलग्न होते हैं , तो ठीक ऐसा ही होता है। आत्म-विश्लेषण में सदा एक संचयी प्रक्रिया निहित है। किसी स्थिति को बदलने क