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योग दर्शन की प्रमाण मीमांसा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer योग दर्शन की प्रमाण मीमांसा योग दर्शन की प्रमाण मीमांसा पतंजलि द्वारा प्रतिपादित प्रमाण का सिद्धान्त पतंजलि ने अपने योग दर्शन में तीन प्रकार के प्रमाण की व्याख्या की है-  प्रत्यक्ष प्रमाण  अनुमान प्रमाण  आगम (शब्द) प्रमाण  प्रत्यक्ष प्रमाण      वस्तु के साथ इन्द्रिय संयोग होने से जो उसका ज्ञान होता है , उसी को प्रत्यक्ष कहते हैं। यह प्रमाण सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। यदि हमें सामने आग जलती हुई दिखाई दे अथवा हम उसके ताप का अनुभव करें , तो यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आग जल रही है। इस ज्ञान में पदार्थ और इन्द्रिय का प्रत्यक्ष सम्बन्ध होना चाहिए। प्रत्यक्ष ज्ञान ( प्रमाण ) सन्देहरहित है। यह यथार्थ और निश्चित होता है। प्रत्यक्ष ज्ञान को किसी अन्य ज्ञान के द्वारा प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती। इसका कारण यह है कि प्रत्यक्ष स्वयं निर्विवाद है , इसलिए कहा गया है कि " प्रत्यक्षे किं प्रमाणम्। " प्रत्यक्ष प्रमाण में विषयों का