Posts

Showing posts with the label प्रश्न

न्याय दर्शन की प्रमाण मीमांसा

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer न्याय दर्शन की प्रमाण मीमांसा  न्याय दर्शन की प्रमाण मीमांसा  प्रमाण के सिद्धान्त      न्याय दर्शन का प्रतिपादन गौतम ने किया था। यह एक ज्ञानमीमांसीय दर्शन है , क्योंकि इसमें ज्ञानमीमांसा को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है अर्थात् ज्ञान क्या है , यह कैसे प्राप्त होता है तथा इसकी प्रामाणिकता क्या है ? आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। न्याय दार्शनिकों के अनुसार , ज्ञान दो प्रकार का होता है - यथार्थ ज्ञान तथा अयथार्थ ज्ञान।      वस्तु जैसी है , जब ठीक वैसा ही ज्ञान प्राप्त होता है , तो ऐसे ज्ञान को यथार्थ ज्ञान कहते हैं , किन्तु जब वस्तु जैसी होती है , ठीक वैसा ही ज्ञान प्राप्त नहीं होता , तो ऐसे ज्ञान को अयथार्थ ज्ञान कहते हैं।  न्याय दर्शन में यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करने के लिए चार स्वतन्त्र प्रमाण स्वीकार किए गए हैं — प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान तथा शब्द। प्रत्यक्ष प्रमाण     शाब्दिक दृष्टि से