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ऋण की अवधारणा |
ऋण की अवधारणा
वेद में तीन ऋण की व्याख्या मिलती है –
1.
ऋषिऋण - ब्रह्मचर्य का पालन करके ऋषिऋण से
उऋण हुआ जा सकता है ।
2.
पितृ ऋण - ग्रहस्थ आश्रम में पुत्र उत्पत्ति
से इस ऋण से उऋण होते हैं ।
3.
देवऋण - यज्ञ आदि क्रिया करके उऋण होते हैं ।
महाभारत में एक चौथे मनुष्य ऋण का वर्णन मिलता है। इस ऋण से
उऋण होने के लिए व्यक्ति को सभी मनुष्य के साथ निस्वार्थ भाव से अच्छा व्यवहार
करना चाहिए।