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राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार

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राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार   राधाकृष्णन का बुद्धि एवं अंतःप्रज्ञा विचार       राधाकृष्णन के अनुसार बुद्धि और अंतःप्रज्ञा में पारस्परिक सहयोग है। अन्तःप्रज्ञा को कम-से-कम कुछ कार्यों के लिए बुद्धि का सहारा लेना ही पड़ता है। अपने अनुभूत सत्यों को व्यक्त करने के लिए , उन्हें दूसरों के लिए बोधगम्य बनाने के लिए तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रमाण करने के लिए अन्तः प्रज्ञा बुद्धि पर झुकती है। इसके द्वारा जो सत्य उपलब्ध होते हैं , वे बहुधा इस रूप में नहीं होते कि अन्य भी उसे समझ सकें। अतः आवश्यकता होती है कि उन सबको इस रूप में प्रस्तुत किया जाए , जो अन्य के लिए भी सरल हो और यह कार्य तो बुद्धि ही कर सकती है। इसके विपरीत बुद्धि एक रूप से अन्त:प्रज्ञा की पूर्वमान्यता पर आधृत होती है। बौद्धिक वृत्ति एक प्रकार से अन्तः प्रज्ञा के बिना अपना कार्य सम्पादित नहीं कर सकती। बौद्धिकता विश्लेषण की विधि है। विश्लेषण के लिए यह अवबोध आवश्यक है कि जिसका विश्लेषण हो रहा है , वह अपने में एक सम्पूर्णता है , एक पूर्ण इकाई है। यह समझ अन्तःप्रज्ञा ही दे सकती है। इसी आधार पर अन्तःप्रज्ञा को प्राथमिक मा