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वैदिक एवं उपनिषदिक विश्व दृष्टि

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैदिक एवं उपनिषदिक विश्व दृष्टि  वैदिक एवं उपनिषदिक विश्व दृष्टि  दार्शनिक विचारों के स्रोत के रूप में प्राचीनतम भारतीय ग्रन्थ वेद है, जिसके अन्तर्गत संहिता, ब्रह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद सभी सम्मिलित है।  वेद के दो भाग है- मन्त्र एवं ब्रह्मण।  ब्रह्मण ग्रन्थों के भाग को आरण्यक और आरण्यक के अन्तिम भाग को उपनिषद कहा जाता है।  ब्रह्मणों में यज्ञ आदि के अनुष्ठान का और आरण्यक एवं उपनिषदों में आध्यात्म विद्या का वर्णन मिलता है।  वैदिक विश्व दृष्टि को चार चरणों में विभक्त किया गया है-  संहिता,  ब्रह्मण,  आरण्यक तथा  उपनिषद।  संहिता  शब्द की चार अवस्थाएं है-  परावाक्,  पश्यन्तीवाक्,  मध्यमावाक् और  वैखरीवाक्।  सबसे सूक्ष्म अवस्था परावाक् है, जिसका प्रत्यक्ष सम्भव नहीं है। उससे स्थूल अवस्था पश्यन्ती है, इस स्वरूप में शब्द की प्रथम अभिव्यक्ति होती है। वेद का प्रकाशन इसी अवस्था में ऋषियों के अंतःकरण में हुआ। इसलिए पश्यन्तीवाक् को वेद कहा जाता है। वेद वाक्यों की