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Tuesday, May 17, 2022

रविन्द्र नाथ टैगोर की राष्ट्रवाद की अवधारणा

रविन्द्र नाथ टैगोर की राष्ट्रवाद की अवधारणा 

रविन्द्र नाथ टैगोर की राष्ट्रवाद की अवधारणा 

    टैगोर के जीवन का दृष्टिकोण प्रतिबद्धता देशभक्ति और प्रकृतिवाद के सिद्धान्त पर आधारित था। वे कहते थे – “भारत जब अन्याय से जूझ रहा हो तो हमारा अधिकार है कि हम इसके विरुद्ध लड़ें और बुराइ के विरुद्ध लड़ने का हमारा उत्तरदायित्व होगा”। वे कहते थे कि “मैं भारत से प्रेम करता हूँ पर मेरा यह विचार है भारत एक भौगोलिक अभिव्यंजना मात्र नहीं है”।

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रविन्द्र नाथ टैगोर का शिक्षा सम्बन्धी विचार

रविन्द्र नाथ टैगोर का शिक्षा सम्बन्धी विचार 

रविन्द्र नाथ टैगोर का शिक्षा सम्बन्धी विचार 

    टैगोर भारत की शिक्षा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने भारतीय पाठशालाओं की तुलना कल- कारखानों से की और अध्यापक की तुलना कारखाने के मैकेनिक से की। वे शिक्षा व्यवस्था में गुरु एवं शिष्य के बीच आत्मीय सम्बन्धों के पक्षधर थे। वे शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते थे। वे कहते थे कि शिक्षा को पैसे से नहीं वरन प्रेम से पाया जा सकता है। टैगोर का मानना था कि शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों में भाई-चारे एवं समरसता का विकास करें।

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रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म

रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म 

रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म 

    टैगोर आध्यात्मिकता को धर्म का आधार मानते थे। उनकी दृष्टि में मानवता ही धर्म है। वे कहते थे कि आध्यात्मिकता के आधार पर ही मानवता को वैश्विक संकट से बचाया जा सकता है। टैगोर के अनुसार, धर्म मनुष्य की आत्मबोध की क्षमता में निहित है। मानव के दो स्वरूप होते है – असीम और ससीम। एक उसका श्रेष्टता का पक्ष है तो दूसरा उसका भौतिक जैविक पक्ष जी पहले की तुलना में निम्नतर है। टैगोर के अनुसार, मानव धरती का बालक तो अवश्य है परन्तु वह वास्तव में स्वर्ग का उत्तराधिकारी है।

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रविन्द्र नाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore )

रविन्द्र नाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore )

रविन्द्र नाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore )

    रबीन्द्रनाथ ठाकुर (7 मई, 1869 – 7 अगस्त, 1941) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

रविन्द्र नाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore ) की रचनाएँ

Ø  गीतांजलि

Ø  पूरबी प्रवाहिन

Ø  शिशु भोलानाथ

Ø  महुआ

Ø  वनवाणी

Ø  परिशेष

Ø  पुनश्च

Ø  वीथिका शेषलेखा

Ø  चोखेरबाली

Ø  कणिका

Ø  नैवेद्य मायेर खेला

Ø  क्षणिका

Ø  गीतिमाल्य

Ø  कथा ओ कहानी

Ø  साधना

Ø  Personality

Ø  Creative Unity

Ø  The Religion of Man

रविन्द्र नाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore ) के दार्शनिक विचार 

रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म


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