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रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म |
रविन्द्र नाथ टैगोर का मानव धर्म
टैगोर आध्यात्मिकता को धर्म का आधार मानते थे। उनकी दृष्टि में
मानवता ही धर्म है। वे कहते थे कि आध्यात्मिकता के आधार पर ही मानवता को वैश्विक
संकट से बचाया जा सकता है। टैगोर के अनुसार, धर्म मनुष्य की आत्मबोध की क्षमता में
निहित है। मानव के दो स्वरूप होते है – असीम और ससीम। एक उसका श्रेष्टता का पक्ष
है तो दूसरा उसका भौतिक जैविक पक्ष जी पहले की तुलना में निम्नतर है। टैगोर के
अनुसार, मानव धरती का बालक तो अवश्य है परन्तु वह वास्तव में स्वर्ग का
उत्तराधिकारी है।
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