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श्रुतिवाक्य

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer श्रुतिवाक्य श्रुतिवाक्य     जैमिनी के मीमांसासूत्र के तीसरे अध्याय में वेदों की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए श्रुति आदि प्रमाणों की योजना बताई गई है। ' श्रुति ' उस वाक्य को कहते हैं , जो किसी अन्य वाक्य की अपेक्षा नहीं रखता। श्रुतिवाक्य अथवा वेदवाक्यों को दो भागों में बाँटा गया है सिद्धार्थ वाक्य विधायक वाक्य सिद्धार्थ वाक्य     सिद्धार्थ वाक्यों से किसी सिद्ध पुरुष के बारे में ज्ञात होता है। प्रभाकर एवं कुमारिल दोनों की मान्यता है कि कर्त्तव्य निर्देश ही वेद का अन्तिम अर्थ है तथा सिद्धार्थ वाक्यों का अर्थ भी क्रिया के सन्दर्भ में करना चाहिए , वेद में आत्मा तथा ब्रह्म के बारे में जितने भी सिद्धार्थ वाक्य हैं , उनका सम्बन्ध योगादि कर्मों के विधायक वाक्यों से ही है। वे परोक्षत : विहित कर्मों में प्रवृत्त होने तथा निषिद्ध कर्मों से रोकने में सहायक हैं। महर्षि जैमिनी के अनुसार , यदि सिद्धार्थ वाक्य विधिवाक्य का सहायक नहीं ह