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शंकर के अनुसार ब्रह्म और आत्मा का स्वरूप

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer शंकर के अनुसार ब्रह्म और आत्मा का स्वरूप शंकर के अनुसार ब्रह्म और आत्मा     शंकर के अद्वैत का केन्द्र ब्रह्म या आत्मा ही है। ब्रह्म या आत्मा में शंकर ने कोई भेद नहीं माना है। उनका यह मत उपनिषदों से ही लिया गया है। ब्रह्म और आत्मा के अभेद होने का प्रमाण वे उपनिषद् की निम्न सूक्तियों के आधार पर करते है- अहं ब्रह्मास्मि (वृह० उप०, 1/4/10) तत्त्वमसि (छन्दोग्य, 7/87) अयमात्मा ब्रह्म (वृहदा० उप०, 2/5/19) एकमेवाद्वितीयम् (छन्दोग्य 622) सर्व खल्विदं ब्रह्म (छन्दोग्य 3/14/1) नेह नानास्ति किंचन (वृहदा० उप० 4/4/19) आत्मा का इदमेक एवाग्र आसीत (ऐत० 2/1/1)     उपरोक्त इन प्रमाणों के अतिरिक्त श्रुति यह भी कहती है कि एक को जान लेने से सब कुछ जान लिया जाता है और यह तभी सम्भव है जब एकमात्र ब्रह्म ही, जो जगत का कारण है, सत् पदार्थ हो। छन्दोग्य के छठे अध्याय में अपने पुत्र व्रतकेतु को समझाते हुए आरुणि ने कहा है कि “कारण को जान लेने से उसके समस्त कार्य