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श्री अरविन्द का समग्र योग

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श्री अरविन्द का समग्र योग  श्री अरविन्द का समग्र योग      श्री अरविन्द के अनुसार, मानस से अतिमानस का विकास योग के द्वारा ही सम्भव है। मानस से अतिमानस तक पहुँचने का उद्योग ही पूर्ण योग या समग्र योग कहलाता है। विकास की इस प्रक्रिया को सम्पन्न करने हेतु त्रिस्तरीय विधि या त्रिस्तरीय रूपांतरणों का प्रयोग किया जाता है – चैत्य रूपांतरण (आत्मिकता की प्रक्रिया), आध्यात्मिक रूपांतरण (आध्यात्मिकता की प्रक्रिया) तथा अतिमानसिक रूपांतरण (अतिमानसिक प्रक्रिया)। श्री अरविन्द के अनुसार, ये तीनों प्रक्रिया आन्तरिक है जिससे केवल आन्तरिक विकास है। अतः श्री अरविन्द का पूर्ण योग ‘आन्तरिक योग’ भी कहलाता है। श्री अरविन्द के अनुसार, मनुष्य का मानस से अतिमानस बन जाना ही पृथ्वी पर दिव्य जीवन को स्थापित करने का सोपान है। दिव्य जीवन वही होगा जहाँ सभी मानव ज्ञान पुरुष होंगें। ---------------

श्री अरविन्द का मन एवं अतिमनस विचार

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श्री अरविन्द का मन एवं अतिमनस विचार   श्री अरविन्द का मन एवं अतिमनस विचार      श्री अरविन्द के अनुसार, विकास की प्रक्रिया जड़ तत्त्व (Matter) , प्राण तत्त्व (Life) तथा मन (Psyche) से होती हुई मानस (Mind) के स्तर तक पहुँचती है। यह मानस अपने आप में पहले तीन स्तरों को समेटे हुए है। इसके बाद मानस से अतिमानस तक का विकास होता है। मानस से अतिमानस तक पहुँचने का क्रमिक विकास स्तर – उच्चतर मानस, प्रदीप्त मानस, अन्तर्दृष्टि तथा व्यापक दृष्टि है। -----------

श्री अरविन्द का विकास विचार

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  श्री अरविन्द का विकास विचार  श्री अरविन्द का विकास विचार      श्री अरविन्द के अनुसार जगत के विकास की प्रक्रिया द्विरूपात्मक है। ये रूप है - अवतरण और विकास। परमतत्त्व की जगत के रूप में अभिव्यक्ति अवतरण है तथा विश्व के विभिन्न स्तरों का निम्न स्तरों से उच्च स्तरों में विकसित होना विकास है और यह विकास तभी सम्भव हो पाता है जब परमतत्त्व का पहले निम्न स्तरों में अवतरण हो। इस विकास में तीन प्रक्रियाएँ समाहित है – विस्तार, ऊर्ध्वीकरण तथा एकीकरण या समग्रीकरण। समग्रीकरण का अर्थ है – निम्नतर रूपों को उच्चतर रूपों में समन्वित करना। यही कारण है कि श्री अरविन्द के विकास सिद्धान्त को ‘विकास का समग्रतावादी सिद्धान्त’ कहा जाता है।   -------------

श्री अरविन्द घोष ( Sri Aurobindo )

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  श्री अरविन्द घोष ( Sri Aurobindo )  श्री अरविन्द घोष ( Sri Aurobindo )      अरविन्द घोष या श्री अरविन्द जन्म- 1872 , मृत्यु- 1950) एक योगी एवं दार्शनिक थे। वे 15 अगस्त 1972 को कलकत्ता में जन्मे थे। इनके पिता एक डाक्टर थे। इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया , किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया। वेद , उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे। उनका पूरे विश्व में दर्शन शास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी सब देशों में पाये जाते हैं। यह कवि भी थे और गुरु भी।    अरविन्द का दर्शन पूर्ण अद्वैतवाद कहलाता है क्योंकि यहाँ जड़ तथा चेतन के द्वैत को स्वीकार नहीं किया गया है बल्कि जड़ तथा चेतन की अंतर्निहित एकता पर बल दिया गया है। अरविन्द का मत है कि परमतत्त्व में जड़ एवं चेतन दोनों पक्षों का अनुपम समन्वय विद्यमान है। श्री अरविन्द घोष ( Sri Aurobindo ) की  कृतियाँ Ø   द मदर Ø   लेटर्स ऑन योगा Ø   सावित्री Ø   योग समन्वय Ø   दिव्य जीवन Ø   फ्यूचर