श्री अरविन्द का विकास विचार

 

श्री अरविन्द का विकास विचार 

श्री अरविन्द का विकास विचार 

    श्री अरविन्द के अनुसार जगत के विकास की प्रक्रिया द्विरूपात्मक है। ये रूप है - अवतरण और विकास। परमतत्त्व की जगत के रूप में अभिव्यक्ति अवतरण है तथा विश्व के विभिन्न स्तरों का निम्न स्तरों से उच्च स्तरों में विकसित होना विकास है और यह विकास तभी सम्भव हो पाता है जब परमतत्त्व का पहले निम्न स्तरों में अवतरण हो। इस विकास में तीन प्रक्रियाएँ समाहित है – विस्तार, ऊर्ध्वीकरण तथा एकीकरण या समग्रीकरण। समग्रीकरण का अर्थ है – निम्नतर रूपों को उच्चतर रूपों में समन्वित करना। यही कारण है कि श्री अरविन्द के विकास सिद्धान्त को ‘विकास का समग्रतावादी सिद्धान्त’ कहा जाता है।  

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