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Tuesday, September 28, 2021

चार्वाकों द्वारा अन्य प्रमाणों का खण्डन

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चार्वाकों द्वारा अन्य प्रमाणों का खण्डन

चार्वाक द्वारा अन्य प्रमाणों का खण्डन

चार्वाक सर्वप्रथम अनुमान का खण्डन करता है। चार्वाक के अनुसार, अनुमान को यथार्थ की प्राप्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि अनुमान निराधार है। अनुमान का आधार है व्याप्ति और व्याप्ति की स्थापना हो नहीं सकती, क्योंकि हम कभी भी भूत और भविष्य की बात तो दूर की है, वर्तमान के भी सभी हेतु और साध्य का प्रत्यक्ष नहीं कर सकते, तो फिर कैसे कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ हेतु है, वहाँ-वहाँ साध्य है। किसी एक ही स्थान पर हेतु और साध्य के बीच अनिवार्य सम्बन्ध की स्थापना करनी है, तो हमें वर्तमान के सभी हेतुओं और साध्यों का प्रत्यक्ष करना होगा, जो सम्भव नहीं है। अत: व्याप्ति की स्थापना नहीं हो सकती। फलतः अनुमान से यथार्थ ज्ञान सम्भव नहीं है।

चार्वाक उपमान प्रमाण को एक स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसकी मान्यता है कि सादृश्यता का प्रत्यक्ष करके हम नामी के होने का अनुमान कर लेते हैं। अतः उपमान एक स्वतन्त्र प्रमाण नहीं है। इसके मूल में अनुमान है। अतः अनुमान का खण्डन करने के साथ ही उपमान का भी खण्डन हो जाता है। चार्वाक अनुमान व उपमान का खण्डन करने के पश्चात् शब्द प्रमाण का खण्डन करता है। नैयायिकों ने दो प्रकार के पदों को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया था-लौकिक पद एवं वैदिक पद।

चार्वाक कहता है कि लौकिक पद कोई स्वतन्त्र प्रमाण नहीं है। यह एक प्रकार का अनुमान ही है; जैसे-धन्वन्तरी ने जिस रोगों का उपचार लिखा है, वह सत्य ही है, कैसे कह सकते हैं? क्योंकि धन्वन्तरी के द्वारा रोगों से सम्बन्धित जितने उपचार हमने देखे थे, वे सत्य थे। अत: हमने अनुमान कर लिया कि अन्य रोगों से सम्बन्धित जितने भी उपचार हैं, वे सत्य ही होंगे। अत: स्पष्ट है कि लौकिक पदों के मूल में अनुमान ही है। अत: जब चार्वाक ने अनुमान का खण्डन किया है, तो लौकिक पदों का स्वतः ही खण्डन हो जाता है।

चार्वाक ने वैदिक पदों का खण्डन उपरोक्त से भिन्न तरीके से किया है। वैदिक पदों के सन्दर्भ में चार्वाक कहता है कि पुरोहित वर्ग ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए यह प्रचार किया कि वेद ईश्वर द्वारा रचित हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि धूर्त ब्राह्मणों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वैदिक पदों की रचना की है। अत: इनसे प्राप्त होने वाला ज्ञान अप्रामाणिक है। यही कारण है कि मैं इसे अस्वीकार करता हूँ।

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