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नागार्जुन के दो सत्यों का सिद्धान्त

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer नागार्जुन के दो सत्यों का सिद्धान्त नागार्जुन के दो सत्यों का सिद्धान्त नागार्जुन ने ' दो सत्यों के सिद्धान्त ' का प्रतिपादन किया है - संवृत्ति या व्यवहार सत्य और परमार्थ सत्य      नागार्जुन के अनुसार जो व्यक्ति इन दोनों सत्यों को नहीं जानता , वह बुद्ध की गम्भीर शिक्षाओं के रहस्य को नहीं जान सकता। नागार्जुन ने संवृत्ति सत्य के दो भेद किए हैं - लोक संवृत्ति एवं मिथ्या संवृत्ति।      लोक संवृत्ति में वे सभी वस्तुएँ आती हैं , जिनकी उत्पत्ति किसी कारण से होती है और जिसका समान अनुभव सभी लोगों को होता है ; जैसे - घट , पट आदि। मिथ्या संवृत्ति से तात्पर्य उन अनुभवों एवं घटनाओं से है , जो हेतु - प्रत्ययजन्य तो हैं , परन्तु उनकी प्रतीति व्यक्ति - विशेष को ही होती है , सभी व्यक्तियों को नहीं ; जैसे - मृगतृष्णा।      नागार्जुन के अनुसार , परमार्थ सत्य बुद्धि से परे अवर्णनीय एवं नि : स्वभाव है। इसमे ज्ञाता , ज्ञे