Posts

Showing posts with the label निरीश्वरवाद

मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद मीमांसा दर्शन का निरीश्वरवाद निरीश्वरवाद     पूर्व - मीमांसा दर्शन में ईश्वर का स्थान अत्यन्त ही गौण है। पूर्व - मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी ने ईश्वर का उल्लेख नहीं किया है जो एक अन्तर्यामी और सर्वशक्तिमान हो। इनके अनुसार संसार की सृष्टि के लिए धर्म और अधर्म का पुरस्कार और दण्ड देने के लिए ईश्वर को मानना भ्रान्तिमूलक है। इस प्रकार मीमांसा दर्शन में देवताओं के गुण या धर्म की चर्चा नहीं हुई है। पूर्व - मीमांसा दर्शन में ईश्वर का स्थान नहीं है , लेकिन देवताओं की चर्चा है। देवताओं की कल्पना बलि - प्रदान के सन्दर्भ में है। देवताओं को केवल बलि को ग्रहण करने वाले के रूप में ही माना गया है। उनकी उपयोगिता केवल इसलिए है कि उनके नाम पर होम किया जाता है। चूँकि मीमांसा दर्शन में अनेक देवताओं को माना गया है इसलिए मीमांसा को बहुदेववादी कहा जा सकता है। लेकिन देवताओं का अस्तित्व केवल वैदिक मन्त्रों में ही माना गया है। विश्व में उनक

सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद     ईश्वर की सत्ता को लेकर सांख्य दर्शन के भाष्यकारों में पर्याप्त मतभेद हैं। उनमें अधिकांश तो ईश्वरवाद का खण्डन करते हैं। ये भाष्यकार उन सभी आधारों का खण्डन करते हैं , जिनके आधार पर ईश्वर से सृष्टि का उद्भव एवं विकास दिखाया जाता है। सनातन सांख्य मतावलम्बी मानते हैं कि यह संसार कार्य श्रृंखला है इसलिए इसका कारण होना चाहिए , परन्तु निःसन्देह वह कारण ईश्वर नहीं हो सकता , क्योंकि ईश्वर को नित्य , निर्विकार एवं पूर्ण परमात्मा माना गया है। जो परमात्मा निर्विकार , स्वयंभू एवं पूर्ण है , वह परिवर्तनशील वस्तुओं का निमित्त कारण नहीं हो सकता अर्थात् वह किसी भी क्रिया का प्रवर्तक नहीं हो सकता।     ईश्वर भौतिक तत्त्व नहीं है। अभौतिक तत्त्व से भौतिक पदार्थों की उत्पत्ति नहीं हो सकती। अत : यह सिद्ध होता है कि जगत् का मूल कारण नित्य , परन्तु परिणामी ( परिवर्तनशील ) है। यही नित्य परिणामी कारण प्रकृति है। य