भारतीय दर्शन |
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चार्वाक दर्शन में ईश्वर का स्वरूप |
चार्वाक दर्शन में ईश्वर का स्वरूप
चार्वाक ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, क्योंकि
इसका प्रत्यक्ष नहीं होता। चार्वाक निमित्त कारण के रूप में भी ईश्वर की सत्ता को स्वीकार
नहीं करता, क्योंकि इनकी मान्यता है कि जड़ तत्त्वों में निहित स्वभाव से जगत
की स्वत: उत्पत्ति हो जाती है। अतः ईश्वर को इस जगत का निमित्त कारण मानने
का कोई औचित्य नहीं।
चार्वाक एक प्रयोजनकर्ता के रूप में भी ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। चार्वाक के मतानुसार, इस जगत का कोई प्रयोजन नहीं है, क्योंकि यह जगत जड़ तत्त्वों के आकस्मिक संयोग का परिणाम मात्र है। चार्वाक के उपरोक्त मत के विरुद्ध आलोचकों ने माना है कि जड़ तत्त्वों से स्वत: इस जगत की उत्पत्ति नहीं हो सकती, इसलिए निमित्त कारण के रूप में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करना अनिवार्य हो जाता है।
जगत में विद्यमान व्यवस्था को देखकर एक व्यवस्थापक के रूप में ईश्वर
की सत्ता को अनुमानित करना आवश्यक है। चार्वाक अपने ईश्वर विचार में प्रत्यक्ष की सीमा
का अतिक्रमण करते हैं, क्योंकि प्रत्यक्ष नहीं होने के कारण वे अनुमान कर लेते हैं, जो ज्ञानमीमांसा
के विरुद्ध है।
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