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विवेकानन्द के धार्मिक अनुष्ठान

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      स्वामी विवेकानन्द के अनुसार , धर्मों का बाहरी अनुष्ठान आध्यात्मिक महत्त्व का होता है। धर्मों के आध्यात्मिक सार को स्वीकार करने की आवश्यकता है। हम मानव जाति को ऐसे स्थान पर ले जाना चाहते हैं , जहाँ न तो वेद , न ही बाइबिल और न ही कुरान है। यह वेदों , बाइबिल एवं कुरान के सामंजस्य से किया जा सकता है। मानव जाति को यह शिक्षा देनी चाहिए कि धर्म विभिन्न प्रकार के विचारों की अभिव्यक्ति है , जिसकी समष्टि में प्रत्येक मानव अपने पथ का चुनाव कर सकता है , जो उसके लिए सबसे उपयुक्त हो। कई दृष्टिकोण से सत्य को देखा जा सकता है और विभिन्न तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है। इस आधारभूत सत्य को स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य की निःस्वार्थ सेवा सर्वव्यापी रूप में प्रदर्शित होती है। इसके लिए आत्मनियन्त्रण वांछनीय है। मोक्ष सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है , जो स्वयं उसमें समाहित है। -----------------

विवेकानन्द के धर्मिक अनुभव

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विवेकानन्द के धर्मिक अनुभव  विवेकानन्द के धर्मिक अनुभव       अधिकांश दार्शनिकों के अनुसार धर्मपरायण शक्तियों को किसी अलौकिक सत्ता को जो विशेष प्रकार का अनुभव प्राप्त होता है , उसे ' धार्मिक अनुभव ' कहा जाता है । किसी अतीन्द्रिय सत्ता में विश्वास धर्म का अनिवार्य तत्त्व है और प्रत्येक उपासक या धर्मपरायण व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में इस सत्ता का अनिवार्य रूप से अनुभव करता है , जिसकी अभिव्यक्ति प्रार्थना , जप-तप , पूजा-पाठ आदि धार्मिक कर्मकाण्ड के माध्यम से होती है। अतीन्द्रिय सत्ता से सम्बन्धित उसके इसी अनुभव को धार्मिक अनुभव कहा जाता है।      अलौकिक सत्ता धार्मिक अनुभव का अनिवार्य तत्त्व है , जो इसे अन्य प्रकार के अनुभवों से पृथक् करता है। धर्मपरायण शक्ति अनिवार्य रूप से किसी अतीन्द्रिय सत्ता को ही अपना आराध्य मानती है। वह अत्यन्त निष्ठापूर्वक इस सत्ता की उपासना करती है और अपने आप को इसी पर पूर्णतः निर्भर मानती है। विवेकानन्द के अनुसार , मानव के भाग्य को दिशा-निर्देश देने वाली शक्तियों में शायद सबसे अधिक प्रभाव धर्म का ही रहता है। धर्म जीवन का एक अनिवार्य पक्ष है। विवेकानन्द के

विवेकानन्द का सार्वभौम धर्म ( Universal Religion )

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विवेकानन्द का सार्वभौम धर्म ( Universal Religion ) विवेकानन्द का सार्वभौम धर्म ( Universal Religion )     विवेकानन्द के अनुसार , सार्वभौमिक धर्म मूलतः दो अनिवार्य लक्षणों पर आधृत है। सार्वभौमिक धर्म तभी हो सकता है , जब यह सभी के लिए खुला हो। धर्म को यह देखना चाहिए कि एक शिशु अबोध एवं निर्दोष है , वह किसी धर्म के साथ पैदा नहीं होता , बल्कि जिस धर्म में पैदा होता है उसी धर्म का हो जाता है , बाद में वह अपनी अभिरुचि एवं मनोवृत्ति के अनुसार धर्म को बदल सकता है। जीवन में सामान्यतः हिन्दू माँ-बाप का बच्चा हिन्दू , मुस्लिम का मुस्लिम , ईसाई का ईसाई व सिख धर्म का बच्चा सिख धर्म को स्वीकार करता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसे बचपन से ऐसी शिक्षा-दीक्षा और संस्कार दिए जाते हैं। उसका सामाजिक जीवन , रहन-सहन उस धर्म की ओर उन्मुख होता है। धर्मों की सार्वभौमिकता की यह पहचान है कि उसके द्वार प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले हों। प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके द्वार खुलने से ही वह सार्वभौमिक धर्म बन पाता है।     धर्मों के सार्वभौमिक होने की दूसरी शर्त यह है कि ऐसे सार्वभौमिक धर्म में यह शक्ति होनी चाहिए

विवेकानन्द का व्यवहारिक वेदान्त ( Practical Vedanta )

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विवेकानन्द का व्यवहारिक वेदान्त ( Practical Vedanta )  विवेकानन्द का व्यवहारिक वेदान्त ( Practical Vedanta )     व्यवहारिक वेदान्त स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा लन्दन में दिए गए 4 व्याख्यानों का संकलन है। जिसमें वेदान्त का महिमा मंडन किया गया है। स्वामी विवेकानन्द जी ने वेदान्त को शास्त्रों से निकालकर जनसामान्य तक ले जाने का महान कार्य किया है। स्वामी जी अपने ढंग के वेदन्ती थे। उनके दर्शन में माया पर विशद् चर्चा हुई है। उनके अनुसार माया तथ्यों का विवरण है। वे बार-बार कहते है कि वेदान्त के विचारों का समय के अनुरूप अर्थ निरूपण अनिवार्य है तथा उनका अपना विचार इसी दिशा में एक प्रयास भी है। -------------

स्वामी विवेकानन्द ( Swami Vivekananda )

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स्वामी विवेकानन्द ( Swami Vivekananda )  स्वामी विवेकानन्द ( Swami Vivekananda )        स्वामी विवेकानन्द ( जन्म: 12 जनवरी 1863 - मृत्यु: 4 जुलाई 1902) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था किन्तु उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण का आरम्भ "मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।       कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थपरिवार में जन्मे विवेकानन्द आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभा