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अम्बेडकर का नवबुद्धवाद

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अम्बेडकर का नवबुद्धवाद  अम्बेडकर का नवबुद्धवाद      डॉ० भीमराव अम्बेडकर को नव बौद्ध दर्शन का जनक माना जाता है। 14 अक्टूबर 1956 को महाराष्ट्र के नागपूर में भुक्षु चंद्रमणि द्वारा इन्होंने बुद्ध धम्म की दीक्षा ली। उन्होंने बुद्ध धम्म को अपनाने के बारें में कहा था – “बुद्ध का धम्म ही केवल एक ऐसा धर्म है जिसे विज्ञान द्वारा जागृत समाज ग्रहण कर सकता है और जिसके बिना वह नष्ट हो जाएगा । आधुनिक संसार को भी खुद को बचाने के लिए बुद्धधम्म को अपनाना होगा । अम्बेडकर बुद्ध धम्म के विषय में कहते है “मैं बुद्ध धर्म को इसलिए पसंद करता हूँ क्योंकि यह एक साथ तीन सिद्धान्त देता है जो दूसरा कोई धर्म नहीं देता । दूसरे सभी धर्म ईश्वर, आत्मा और मृत्यु के बाद का जीवन में उलझे हुए हैं । बुद्ध धर्म अंधविश्वास और अलौकिकता के मुकाबले में प्रज्ञा (ज्ञान) सिखाता है । यह करुणा (प्रेम) सिखाता है। यह समता (समानता) की शिक्षा देता है । बुद्ध धर्म के ये तीन सिद्धान्त मुझे अकृषित करते हैं। दुनिया को भी ये तीनों सिद्धान्त पसंद आने चाहिए । न तो ईश्वर और न आत्मा संसार को बचा सकते है” । -----------

अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन

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अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन  अम्बेडकर का हिन्दुवाद दर्शन  हिन्दू धर्म संस्था के बारे में डॉ. अम्बेडकर ने अपना दृष्टिकोण निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है – “जो धर्म इंसानों में मानवीय बर्ताव को वर्जित करता है वह धर्म , धर्म नहीं है , बल्कि एक दण्ड है , एक सजा है” । जिन कारणों से डॉ. अंबेडकर ने हिन्दूवाद का त्याग किया , उनकी व्याख्या , उन्होंने इस प्रकार की है – 1.     अज्ञान को प्रोत्साहन - हिन्दूवाद अज्ञान का उत्पादक , पालक और प्रचारक है । गीता का यह आदेश कि ' अज्ञानी को अज्ञानी ही रहने दो , किसी प्रकार के बौद्धिक विकास की गुंजाइश नहीं छोड़ता । 2.    नैतिकता का अभाव - नैतिकता हिन्दूवाद की बुनियाद नहीं । जैसे - रेल के किसी डिब्बे को कभी गाड़ी से जोड़ दिया जाता है तो कभी अलग कर लिया जाता है, ऐसे ही हिन्दूवाद में नैतिकता का स्थान है । 3.    असमता - जातिभेद , छुआछात , भेदभाव और क्रमवार ना-बराबरी हिन्दूवाद के अभिन्न अंग हैं क्योंकि उनको हिन्दू धर्म शास्त्रों का समर्थन प्राप्त है , इनको मिटाने का मतलब है हिन्दूवाद को मिटाना । हिन्दू यह करने के लिए न कभी पहले तैयार थे , न इस

अम्बेडकर का जाति उच्छेदन विचार

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अम्बेडकर का जाति उच्छेदन विचार  अम्बेडकर का जाति उच्छेदन विचार      आंबेडकर के विख्यात भाषण एनीहिलेशन ऑफ कास्ट ( 1936 ) के ललई सिंह यादव द्वारा कृत हिंदी-रूपांतर “जाति-भेद का उच्छेद” के दो प्रकरणों इस विषय पर है । यह भाषण जाति-पाँति तोड़क मंडल ( लाहौर ) के वार्षिक सम्मेलन ( सन् 1936 ) के अध्यक्षीय भाषण के रूप में तैयार किया गया था, परंतु इसकी क्रांतिकारी दृष्टि से आयोजकों की पूर्णतः सहमति न बन सकने के कारण सम्मेलन ही स्थगित हो गया और यह पढ़ा न जा सका । बाद में , आंबेडकर ने इसे स्वतंत्र पुस्तिका के रूप में प्रकाशित कर वितरित किया , जो पर्याप्त लोकप्रिय हुई । उनके अनुसार समानता , स्वतंत्रता व बंधुता - ये तीन तत्त्व आदर्श समाज में अनिवार्यतः होने चाहिए , जिससे लोकतंत्र सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के अर्थ तक भी पहुँचे। ------------

भीमराव आम्बेडकर ( B. R. Ambedkar )

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भीमराव आम्बेडकर ( B. R. Ambedkar )  भीमराव आम्बेडकर ( B. R. Ambedkar )      भीमराव रामजी आम्बेडकर ( 14 अप्रैल , 1891 – 6 दिसंबर , 1956 , डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय , भारतीय बहुज्ञ , विधिवेत्ता , अर्थशास्त्री , राजनीतिज्ञ , और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों , किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री , भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर का साहित्य 1.     एडमिनिस्ट्रेशन एंड फिनांसेज़ ऑफ़ द ईस्ट इंडिया कंपनी 2.    द एवोल्यूशन ऑफ़ प्रोविंशियल फिनांसेज़ इन ब्रिटिश इंडिया 3.    दी प्राब्लम आफ दि रुपी : इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन 4.    अनाइहिलेशन ऑफ कास्ट्स (जाति प्रथा का विनाश) 5.    विच वे टू इमैनसिपेशन 6.    फेडरेशन वर्सेज़ फ्रीडम 7.     पाकिस्तान और द पर्टिशन ऑफ़ इण्डिया/थॉट्स ऑन पाकिस्तान 8.    रानडे , गांधी एंड जिन्नाह 9.    मिस्टर गांधी एण्ड दी एमेन्सीप