Showing posts with label क्षणिकवाद. Show all posts
Showing posts with label क्षणिकवाद. Show all posts

Saturday, October 2, 2021

बौद्ध दर्शन का क्षणिकवाद सिद्धान्त

भारतीय दर्शन

Home Page

Syllabus

Question Bank

Test Series

About the Writer

बौद्ध दर्शन का क्षणिकवाद सिद्धान्त 

बौद्ध दर्शन का क्षणिकवाद सिद्धान्त 

क्षणिकवाद (क्षणभंगवाद)

     क्षणिकवाद उत्तरकालीन बौद्ध दार्शनिकों का विचार है। वे कहते हैं कि क्षणिकवाद का विचार बुद्ध के दर्शन पर आधारित है, लेकिन यह सत्य नहीं है, क्योंकि बुद्ध ने यह कभी नहीं कहा कि वस्तुएँ क्षणिक हैं, बल्कि बुद्ध ने कहा था कि वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं।

     क्षणिकवादी कहते हैं कि एक क्षण से अधिक कोई वस्तु नहीं रहती है। सभी पदार्थ, सभी घटनाएँ तथा सभी अनुभूतियाँ एक क्षण के लिए होती हैं। इसके मूल में महात्मा बुद्ध द्वारा प्रस्तुतअर्थक्रियाकार्यत्व' का विचार है जिसका उल्लेख उन्होंने अपने प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धान्त के अन्तर्गत किया था तथा कहा था कि सत् वह है जिसमें कार्य उत्पन्न करने की क्षमता होती है।

     क्षणिकवादी कहते हैं कि यदि वस्तु सत् है, तो फिर उसमें कार्य उत्पन्न करने की शक्ति भी होगी और तब वह हर क्षण कार्य उत्पन्न करेगी। यह कार्य अगले ही क्षण कारण में परिवर्तित होकर पुन: किसी कार्य को उत्पन्न कर देगा और निरन्तर यही क्रम चलता रहेगा। इसीलिए क्षणिकवादी कहते हैं कि 'वस्तु की उत्पत्ति, स्थिति तथा विनाश तीनों एक ही क्षण में हो जाता है, अत: वस्तुएँ क्षणभंगुर हैं। '

क्षणिकवाद के मूल उद्घोष

     क्षणिकवाद के दो मूल उद्घोष हैंइदम् सर्वक्षणिकम् तथा इदम् सर्वअनात्म्। इदम् सर्वक्षणिकम् का शाब्दिक अर्थ है कि यह समस्त जगत् क्षणिक है। जगत् में सब कुछ अनित्य है, केवल क्षणिकवाद ही नित्य है। इदम् सर्वअनात्म् का शाब्दिक अर्थ है कि आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि मानव पाँच स्कन्धों-रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार तथा चेतना का योग मात्र है जो कि सतत् परिवर्तनशील हैं।

     उपरोक्त दोनों उद्घोषों के आधार पर ही क्षणिकवादी कहते हैं कि केवल चेतना का प्रवाह ही एकमात्र सत् है। हीनयानियों ने क्षणिकवाद को निम्न दो उपमाओं के द्वारा समझाने का प्रयास किया है-

दीपशिखा के माध्यम से

नदी के प्रवाह के माध्यम से

      जिस प्रकार दीपशिखा एक व नित्य नहीं, बल्कि अनेक व अनित्य है, क्योंकि यह छोटी-छोटी चिंगारियों का प्रवाह मात्र है। इन चिंगारियों की निरन्तरता तथा समानता के कारण हम दीपशिखा को एक तथा नित्य मान लेते हैं। उसी प्रकार हम जगत् की वस्तुओं के सन्दर्भ में एकता तथा नित्यता का आरोपण कर देते हैं, जबकि वास्तव में वे अनित्य हैं। इसी प्रकार नदी भी एक तथा नित्य नहीं, क्योंकि यह अनेक छोटी-छोटी धाराओं का प्रवाह मात्र होने के कारण प्रतिक्षण परिवर्तनशील अर्थात् अनेक व अनित्य है, इसीलिए कोई भी व्यक्ति एक नदी में दो बार स्नान नहीं कर सकता।

क्षणिकवाद की आलोचना

उत्तरकालीन बौद्ध दार्शनिकों द्वारा प्रस्तुत क्षणिकवाद की निम्न आधारों पर आलोचना होती है

    यदि हर वस्तु क्षणिक है, तो उनसे होने वाले अनुभव भी क्षणिक हैं और यदि ऐसा है तो अतीत में जो अनुभव हमें हो चुके हैं उनकी अनुभूति हमें कैसे होती रहती है। इसी प्रकार यदि वस्तुएँ क्षणिक हैं, तो हम किसी वस्तु को देखकर यह कैसे पहचान लेते हैं कि यह तो वही वस्तु है।

    यदि सब कुछ क्षणिक है, तो बुद्ध के प्रतीत्यसमुत्पाद (कारण-कार्य सिद्धान्त) की व्याख्या कैसे हो पाएगी, क्योंकि क्षणिकवादी कहते हैं कि जिस क्षण कार्य होता है उस क्षण कारण रहता ही नहीं और तब कैसे कहेंगे कि कारण से कार्य उत्पन्न हुआ है।

    क्षणिकवाद को मानने पर कर्म-नियम का सिद्धान्त असंगत हो जाता है, क्योंकि कर्म कोई करता है तथा फल किसी अन्य को मिलता है।

    यदि आत्मा परिवर्तनशील है, तो स्मृति को भी परिवर्तनशील मानना होगा और यदि ऐसा है तो हमें स्मरण कैसे होता है। स्मरण तभी माना जा सकता है, जब स्मरणकर्ता क्षणिक न होकर कुछ समय तक स्थायी हो। इसके साथ-ही-साथ पहचानी जाने वाली वस्तु में भी स्थिरता आवश्यक है।

    क्षणिकवाद के सिद्धान्त को मान लेने पर निर्वाण का विचार भी खण्डित हो जाता है। जब व्यक्ति क्षणिक है, तब दुःख से छुटकारा पाने का प्रयास करना निरर्थक है, क्योंकि दुःख से छुटकारा दूसरे ही व्यक्ति को मिलेगा।

    इसी प्रकार नदी भी एक तथा नित्य नहीं, क्योंकि यह अनेक छोटी-छोटी धाराओं का प्रवाह मात्र होने के कारण प्रतिक्षण परिवर्तनशील अर्थात् अनेक व अनित्य है, इसलिए कोई भी व्यक्ति नदी में दो बार स्नान नहीं कर सकता।

-------------

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ?

विश्व के लोगों को चार्वाक दर्शन का ज्ञान क्यों जरूरी है ? चार्वाक दर्शन की एक बहुत प्रसिद्ध लोकोक्ति है – “यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्...