Posts

Showing posts with the label जीव का स्वरूप

जैन दर्शन में जीव का स्वरूप

Image
भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer जैन दर्शन में जीव का स्वरूप  जैन दर्शन में जीव का स्वरूप        जैन दर्शन में आत्मा शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। आत्मा के स्थान पर ' जीव ' शब्द का प्रयोग किया गया है। यहाँ जीव , आत्मा का पर्यायवाची है। जैन दर्शन में जीव को एक चेतन द्रव्य माना गया है। चैतन्य जीव का मूल लक्षण है। यह जीव में सदैव विद्यमान रहता है। चैतन्य के अभाव में जीव की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जैन दर्शन में जीव को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ' चेतना लक्षणो जीव :' ।      जैन दार्शनिकों का जीव सम्बन्धी यह विचार न्याय - वैशेषिक के आत्मा विचार से भिन्न है , क्योंकि न्याय - वैशेषिक के अनुसार आत्मा स्वभावतः चैतन्य से रहित है। जब आत्मा का सम्पर्क पाँच इन्द्रियों तथा मन से होता है , तो आत्मा में चैतन्य का संचार होता है। अतः स्पष्ट है कि न्याय - वैशेषिक में चैतन्य को आत्मा का आगन्तुक गुण माना गया है , परन्तु जैन दर्शन में चैतन्य को आत्मा का स्वभाव माना गया है।