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सांख्य दर्शन में पुरुष की बहुलता (अनेकता) के लिए युक्तियाँ

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन में पुरुष की बहुलता (अनेकता) के लिए युक्तियाँ सांख्य दर्शन में पुरुष की बहुलता (अनेकता) के लिए युक्तियाँ      सांख्य दर्शन पुरुष की अनेकता के प्रमाण प्रस्तुत करता है , जिससे यह अन्ततः पुरुष बहुत्ववाद या अनेकात्मवाद में परिणत हो जाता है। सांख्य दर्शन जब यह कहता है कि पुरुष अनेक हैं , तो इससे सोपाधिक पुरुष की अनेकता सिद्ध  होती है। इस अनेकता को सिद्ध करने हेतु निम्नांकित उक्ति प्रस्तुत करता है “ जननमरणकरणानां प्रतिनियमात्युगपत प्रवृत्तेश्च। पुरुष बहुत्व सिद्ध त्रैगुण्यविवर्ययाच्चैव।। " इस उक्ति के निहितार्थ को निम्नांकित बिन्दुओं में समझा जा सकता है - जनन      विभिन्न पुरुषों का जनन अलग - अलग होता है , अत : ' पुरुष ' की अनेकता सिद्ध होती है। मरण      विभिन्न पुरुषों की मृत्यु अलग - अलग होती है , अत : पुरुष अनेक हैं , क्योंकि यदि पुरुष को अनेक न माना जाए , तो फिर एक पुरुष की मृत्यु से बाकी समस्त मनुष्यों की मृ