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वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा  वैशेषिक दर्शन में अभाव पदार्थ की अवधारणा      न्याय - वैशेषिक दर्शन में अभाव को एक पदार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है। इनके अनुसार किसी स्थान विशेष , काल विशेष में किसी वस्तु का उपस्थित नहीं होना ' अभाव ' है। यहाँ अभाव को एक पदार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है , क्योंकि अभाव का शाब्दिक अर्थ ' नहीं होना। किसी वस्तु के अभाव को सूचित करता है , इसे ज्ञान का विषय बनाया जा सकता है , इसे नाम दिया जा सकता है। यदि अभाव को स्वीकार न किया जाए तो असत्कार्यवाद तथा मोक्ष की संगत व्याख्या सम्भव नहीं है। वैशेषिक में अभाव के दो प्रकार बताए गए हैं - अन्योन्याभाव तथा संसर्गाभाव को पुन : तीन भागों में बाँटा गया है — प्राग् भाव , प्रध्वंसाभाव तथा अत्यन्ताभाव।      न्याय वैशेषिक ने अपना उपरोक्त जो पदार्थ विचार प्रस्तुत किया है उसकी कई आधारों पर आलोचना होती है ; जैसे - शंकर का विचार है कि व