Posts

Showing posts with the label कर्तव्य की अवधारणा

कर्तव्य की अवधारणा (कर्म) Karma की अवधारणा

Image
कर्तव्य की अवधारणा (कर्म) Karma की अवधारणा  कर्तव्य की अवधारणा (कर्म) Karma की अवधारणा  कर्म - इसका सामान्य अर्थ किसी कार्य का सम्पादन करना होता है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार – ‘एक द्रव्यमगुणं संयोग विभागेष्वनपेक्षकारमिति कर्म लक्षणम्’ (वै० सू० 1.1.17)। अर्थात् एक द्रव्य के आश्रित होना , गुण रहित होना , संयोग और विभाग में अन्य की अपेक्षा न रखते हुए कारण होना , कर्म का लक्षण है। वैशेषिक दर्शन में कर्म को पदार्थ का एक प्रकार माना गया है। उत्क्षेपण , अवक्षेपण , आकुंचन , प्रसारण एवं गमन के भेद से वैशेषिक दर्शन में कर्म पाँच प्रकार का माना गया है। मीमांसा दर्शन में वैदिक यज्ञ सम्बन्धी कर्मकाण्ड के अनुष्ठान को कर्म कहा जाता है। कुमारिल भट्ट के अनुसार, चलनात्मक रूप क्रिया ही कर्म है। जैमिनि सूत्र (2.1.1) में कहा गया है कि कर्म से अपूर्व होती क्रिया फलित होती है। वैद्यनाथ भट्ट के अनुसार - जो अपूर्व का निश्चायक है , वह कर्म है (न्या० वि० 50-17)। मीमांसा दर्शन में नित्य , नैमित्तिक तथा प्रतिषिद्ध के भेद से कर्म तीन प्रकार का माना गया है। योग दर्शन विहित और प्रतिषिद्ध के रूप में दो प्रकार के कर्म