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सांख्य दर्शन में पुरुष व प्रकृति का स्वरूप व सम्बन्ध

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन में पुरुष व प्रकृति का स्वरूप व सम्बन्ध सांख्य दर्शन में पुरुष व प्रकृति का स्वरूप व सम्बन्ध     सांख्य दर्शन द्वैतवादी दर्शन है। इसके अनुसार पुरुष और प्रकृति संसार के दो परम तत्त्व हैं। इस द्वैतवादी दर्शन में पुरुष का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ चेतना को पुरुष कहा गया है तथा इसे निष्क्रिय , ज्ञानस्वरूप , अकर्ता ,  अभोक्ता , सभी प्रकार के अनुभवों से रहित , निर्लिप्त दृष्टा तथा नित्य मुक्त बताया गया है। पुरुष के विपरीत प्रकृति को निरवयव , शाश्वत , अदृश्य , अचेतन , किन्तु सक्रिय बताया गया है।      सांख्य दार्शनिकों के अनुसार अनादि अज्ञान के कारण पुरुष को अपने उपरोक्त स्वरूप का ज्ञान नहीं रहता। अत : यह अपने आप को शरीर , मन , इन्द्रिय तथा बुद्धि आदि समझता है तथा अपने आप को कर्ता , भोक्ता तथा अनुभवकर्ता आदि मानता है। ऐसे पुरुष को ही सोपाधिक पुरुष की संज्ञा दी गई है। यह पुरुष ही बन्धन में रहता है , जब तक कि उसे विवेक ज्ञान नहीं हो