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सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना प्रकृति अविद्या 1.     प्रकृति एक स्वतंत्र तत्व है। 1.     अविद्या एक स्वतंत्र तत्त्व नहीं वह ब्रह्म की शक्ति है। 2.    प्रकृति त्रिगुणात्मक है। 2.    अविद्या भी त्रिगुणात्मक है। 3.    प्रकृति अचेतन है। 3.    अविद्या भी अचेतन है। 4.    प्रकृति भावात्मक ( Positive) है। 4.    अविद्या या आवरण और विक्षेप शक्तियों वाली माया भावात्मक ही है। 5.    प्रकृति संसार के प्रपंचों को उत्पन्न करती है। 5.    अविद्या भी संसार के प्रपंचों को उत्पन्न करती है। 6.    प्रकृति के कार्यं सत् ( Real) हैं। 6.    अविद्या के कार्य व्यावहारिक दृष्टि से सत् भले ही हों पारमार्थिक दृष्टि से मिथ्या हैं।

सांख्य दर्शन एवं अरस्तू के कारण-कार्य सिद्धान्त की तुलना

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन एवं अरस्तू के कारण-कार्य सिद्धान्त की तुलना सांख्य दर्शन एवं अरस्तू के कारण-कार्य सिद्धान्त की तुलना     कार्य - कारण भाव अरस्तू के दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है , जिसके माध्यम से उसने जगत् की व्यापक दार्शनिक व्याख्या करने का प्रयास किया। यहाँ कार्य - कारण भाव एक मौलिक एवं व्यापक अवधारणा है। सांख्य दर्शन का कारण कर्ता सिद्धान्त सत्कार्यवाद कहलाता है। अरस्तू की मान्यता है कि जगत् की प्रत्येक वस्तु अपनी उत्पत्ति से पूर्व मैटर में विद्यमान थी। अरस्तू मानते हैं कि जगत् की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति के कारण होते हैं , जो इस  प्रकार हैं - ●     उपादान कारण उपादान कारण से आशय उस सामग्री से है , जिससे कार्य की उत्पत्ति होती है ; जैसे - घड़े के निर्माण के लिए मिट्टी उपादान ( सामग्री ) है। ●     निमित्त कारण निमित्त कारण से आशय उन क्रियाओं , साधनों और उनका प्रयोग करने वाले से है , जिनकी सहायता से कार्य सम्पन्न किया जाता है। जैसे

सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा  सांख्य दर्शन में मोक्ष (कैवल्य) की अवधारणा      सांख्य दर्शन में भी अन्य भारतीय दर्शनों ( चार्वाक दर्शन को छोड़कर ) की भाति मोक्ष को परम आध्यात्मिक लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यहाँ मोक्ष से आशय ' समस्त दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति ' मात्र से है न कि आनन्दपूर्ण अवस्था से। अन्यों की भाँति सांख्य भी संसार को दु : खात्मक मानते हैं।     सांख्य के अनुसार , संसार में तीन प्रकार के दुःख पाए जाते हैं - आध्यात्मिक दुःख अधिभौतिक दु : ख तथा अधिदैविक दु : ख ; इन तीन प्रकार के दु : खों को ही ' त्रिविध ताप ' की संज्ञा दी गई है तथा इनसे मुक्त होने को ही जीवन के परम लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यहाँ मोक्ष के लिए अपवर्ग शब्द का प्रयोग किया गया है।     अधिभौतिक दुःख बाह्य वस्तुओं ; जैसे — बाढ़ , भूकम्प , तूफान आदि प्राकृतिक आपदाएँ , चोट लगना , घाव हो जाना इत्यादि अधिभौतिक दुःख हैं

सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद सांख्य दर्शन का निरीश्वरवाद     ईश्वर की सत्ता को लेकर सांख्य दर्शन के भाष्यकारों में पर्याप्त मतभेद हैं। उनमें अधिकांश तो ईश्वरवाद का खण्डन करते हैं। ये भाष्यकार उन सभी आधारों का खण्डन करते हैं , जिनके आधार पर ईश्वर से सृष्टि का उद्भव एवं विकास दिखाया जाता है। सनातन सांख्य मतावलम्बी मानते हैं कि यह संसार कार्य श्रृंखला है इसलिए इसका कारण होना चाहिए , परन्तु निःसन्देह वह कारण ईश्वर नहीं हो सकता , क्योंकि ईश्वर को नित्य , निर्विकार एवं पूर्ण परमात्मा माना गया है। जो परमात्मा निर्विकार , स्वयंभू एवं पूर्ण है , वह परिवर्तनशील वस्तुओं का निमित्त कारण नहीं हो सकता अर्थात् वह किसी भी क्रिया का प्रवर्तक नहीं हो सकता।     ईश्वर भौतिक तत्त्व नहीं है। अभौतिक तत्त्व से भौतिक पदार्थों की उत्पत्ति नहीं हो सकती। अत : यह सिद्ध होता है कि जगत् का मूल कारण नित्य , परन्तु परिणामी ( परिवर्तनशील ) है। यही नित्य परिणामी कारण प्रकृति है। य