सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना

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सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना

सांख्य की प्रकृति एवं वेदान्त की अविद्या में तुलना

प्रकृति

अविद्या

1.    प्रकृति एक स्वतंत्र तत्व है।

1.    अविद्या एक स्वतंत्र तत्त्व नहीं वह ब्रह्म की शक्ति है।

2.   प्रकृति त्रिगुणात्मक है।

2.   अविद्या भी त्रिगुणात्मक है।

3.   प्रकृति अचेतन है।

3.   अविद्या भी अचेतन है।

4.   प्रकृति भावात्मक (Positive) है।

4.   अविद्या या आवरण और विक्षेप शक्तियों वाली माया भावात्मक ही है।

5.   प्रकृति संसार के प्रपंचों को उत्पन्न करती है।

5.   अविद्या भी संसार के प्रपंचों को उत्पन्न करती है।

6.   प्रकृति के कार्यं सत् (Real) हैं।

6.   अविद्या के कार्य व्यावहारिक दृष्टि से सत् भले ही हों पारमार्थिक दृष्टि से मिथ्या हैं।

7.    पुरुष को मोक्ष दिलाने के लिए प्रकृति इतने कार्य उत्पन्न करती है (परिणत होती है)।

7.    अविद्या बंधन में डालने वाले कार्यों को उत्पन्न करती है।

8.   प्रकृति कार्य पूरा करके स्वयं निवृत्त हो जाती है।  

8.   जीव को अविद्या के नाश के लिए प्रयत्न करना पड़ता है।

9.    प्रकृति के कार्यों का पुरुष साक्षी है।

9.    अविद्या के कार्यों का ब्रह्म या जीव साक्षी नहीं होता।

10.  प्रकृति में कोई शक्ति वस्तु को छिपाने के लिए नहीं है।

10.  अविद्या में आवरण और विक्षेप नाम की दो शक्तियाँ हैं।

11.   प्रकृति स्वतंत्र तत्त्व होने के कारण अनादि है।

11.   अविद्या स्वतंत्र तत्त्व न होने पर भी अनादि है।

12.  प्रकृति के कार्य परिणामवाद पर आधारित हैं।

12.  अविद्या के कार्य विवर्तवाद पर आधारित हैं।

13.  पुरुष को मुक्ति प्रकृति पुरुष में भेद के ज्ञान से होती है।

13.  जीव को मुक्ति अविद्या के नाश से ब्रह्म का शुद्ध रूप में ज्ञान से होती है।`

14.  प्रकृति सभी जीवों के लिए एक ही है।

14.  अविद्या सभी जीवों में अलग अलग है।

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