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बौद्ध दर्शन का आष्टांगिक मार्ग

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer बौद्ध दर्शन का आष्टांगिक मार्ग बौद्ध दर्शन का आष्टांगिक मार्ग      बौद्ध दार्शनिकों की मान्यता है कि मनुष्य को निर्वाण तभी प्राप्त हो सकता है , जब आष्टांगिक मार्ग के अनुरूप निष्ठापूर्वक आचरण करे। ऐसा करने पर अविद्या का अन्त तथा प्रज्ञा का उदय होता है तथा मनुष्य को समस्त दुःखों से पूर्णतया छुटकारा मिल जाता है और वह संसार चक्र से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। बौद्ध दर्शन का आष्टांगिक मार्ग निम्नलिखित हैं - सम्यक् दृष्टि ( सम्मादिट्ठि ) अविद्या के कारण आत्मा संसार के सम्बन्ध में मिथ्या दृष्टि की उत्पत्ति करती है। अविद्या ही हमारे दु : खों का मूल कारण है। अविद्या से ही मिथ्या दृष्टि उत्पन्न होती है और हम अनित्य दुःखद और अनात्म को नित्य सुखकर और आत्मरूप समझ बैठते हैं। इस दृष्टि को छोड़कर यथार्थ स्वरूप पर ध्यान लगाना चाहिए। सम्यक् संकल्प आर्य सत्यों के ज्ञानमात्र से कोई लाभ नहीं हो सकता , जब तक उनके अनुसार जीवन बिताने का संकल्प या दृढ़ इच्छा नहीं