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मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा    मीमांसा दर्शन में अनुमान की अवधारणा  अनुमान     मीमांसा का अनुमान प्रमाण न्याय के अनुमान से मिलता है। न्याय में अनुमान का शब्दार्थ किया गया है - पश्चाद्ज्ञान। एक बात से दूसरी बात को देख लेना ( अनु + ईशा ) या एक बात को जान लेने के बाद दूसरी बात को जान लेना ( अनु - मतिकरण ) पश्चाद्ज्ञान या अनुमान कहलाता है। धुआँ को वहाँ अग्नि के होने का अनुमान लगाना इस प्रमाण का उदाहरण है। इसलिए प्रत्यक्ष वस्तु ( धुआँ ) के आधार पर अप्रत्यक्ष वस्तु ( अग्नि ) का ज्ञान प्राप्त करना ही अनुमान की प्रक्रिया का आधार है। ---------

योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा  योग दर्शन में अनुमान प्रमाण की अवधारणा  अनुमान प्रमाण लक्षण देखकर जिस किसी वस्तु का ज्ञान होता है , उसे अनुमान कहते हैं। यहाँ अनुमान दो प्रकार के माने गए हैं वीत अनुमान अवीत अनुमान वीत अनुमान वीत अनुमान उसे कहते हैं , जो पूर्णव्यापी भावात्मक वाक्य पर अवलम्बित रहता है। वीत अनुमान के दो भेद माने गए हैं - पूर्ववत् अनुमान सामान्यतोदृष्ट अनुमान पूर्ववत्   अनुमान    पूर्ववत् अनुमान उसे कहते हैं , जो दो वस्तुओं के बीच व्याप्ति - सम्बन्ध पर आधारित है। धुआँ और आग दो ऐसी वस्तुएँ हैं , जिनके बीच व्याप्ति - सम्बन्ध निहित है। इसलिए धुआँ को देखकर आग का अनुमान किया जाता है। सामान्यतोदृष्ट   अनुमान    सामान्यतोदृष्ट अनुमान वह अनुमान , जो हेतु और साध्य के बीच व्याप्ति - सम्बन्ध पर निर्भर नहीं करता है , सामान्यतोदृष्ट अनुमान कहलाता है। इस अनुमान का उदाहरण निम्नांकित है -      आत्मा के ज्

न्याय दर्शन का अनुमान प्रमाण

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भारतीय दर्शन Home Page Syllabus Question Bank Test Series About the Writer न्याय दर्शन का अनुमान प्रमाण न्याय दर्शन का अनुमान प्रमाण      चार्वाक दर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय दर्शनों के समान ही न्याय दर्शन में भी अनुमान को यथार्थ ज्ञान प्राप्ति के साधन के रूप में स्वीकार किया गया है। अनुमान दो शब्दों के योग से बना है - अनु एवं मान। यहाँ ' अनु ' का अर्थ है-  पश्चात् तथा मान का अर्थ है ' ज्ञान ' अर्थात् अनुमान का शाब्दिक अर्थ है ' पश्चात् ज्ञान। अन्य शब्दों में पूर्व ज्ञान के पश्चात् और उसी पर आधारित होकर होने वाले ज्ञान को अनुमान कहते हैं। अत : स्पष्ट है अनुमान का आधार पूर्व में किए गए अनुभव हैं। उदाहरणार्थ - सामने पहाड़ी पर धुआँ दिख रहा है। धुएँ को देखकर यह ज्ञान हो जाना कि वहाँ आग है , यह एक अनुमान है। आग का ज्ञान हमें इसलिए प्राप्त हो गया , क्योंकि जब - जब हमने धुआँ देखा , तब - तब उसके साथ हमें आग भी दिखाई दी। अत : धुएँ और आग के बीच अनिवार्य सम्बन्ध ( व्याप्ति ) का हमें ज्ञान था। इस व्याप्ति क